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राक्षस कहता है - हीमाणहे पलिश्शन्ता हगे एदेण णिअविहिणो दुव्विल - शिदेण | विस्मय के लिए उदाहरण, उदात्तराघव (नाटक) में राक्षस कहता है- हीमाणहे जीवन्तच्छा मे जणणी 'एवायें एव' [३.२.१८] सूत्रानुसार-मए एव्त्र । 'हजे चेटयाह्वाने' [३.२.१९] सूत्रानुसार-हजे चदुलिए । 'अतो उसे र्दुदोश' [३.२.२०] सूत्रानुसार अहं पि भागुलाअणादो मुहं पात्रेमि । 'आत्सावामन्त्र्य इनो नः ' [३.२.२१] सूत्रानुसार हे कञ्चुइआ । ‘म:' [३.२.२२] सूत्रानुसार हे लाअं । 'भवताम्' [३.२.२३] सूत्रानुसारएदु भवं शमणे भअवं महावीले । 'भविष्यति स्सि ः ' [३.२.२४] सूत्रानुसार कहिं णु एदे लुहिल पिए भविश्शिदि । 'इचे चोर्दट्' [३.२.२५] सूत्रानुसार अमच्चल कशे पेक्खिदुं इदो एव्त्र आअच्छदि । अले किं एशे महन्दे कलकले शुणी अदि । 'शेषं प्राकृतवत्' [३.२.२६] सूत्रानुसार, मागधी, 'दिहौ मिथः से' [१.१.१८] इस सूत्र से 'दस्तस्य शौरसेन्यामखावचोऽस्तो:' [३.२.१] सूत्रतक जो सूत्र (और) उनमें जो उदाहरण होते हैं, उनमें थे (अमुक) उसी अवस्था में ( मागधीमें आते हैं), ऐसा विभाग स्वयं करके देखें ॥। २७ ॥
त्रिविक्रम प्राकृत व्याकरण
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त्वाड्डाहो ङसः ॥ २८ ॥
(इस सूत्र ३.२.२७ से) मागध्याम् पदकी अनुवृत्ति है । मागधीमें आत् यानी अ-वर्णके आगे उस को डित् आह ऐसा आदेश विकल्प से होता है | उदा. - हगे न एलिशाह कम्माह काली, अहं न ईदृशस्य कर्मणः कारी | भअदत्तशोणिदाह कुम्भे, भगदत्तशोणितस्य कुम्भः । विकल्पपक्ष मेंभीमशेणश्श पश्चादो आहिण्डीअदि । हिडिम्बार घटुक्क अशोए ण उवशमदि ॥ २८ ॥
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आमो डाहद || २९ ॥
मागधीमें अवर्णके आगे आम् को डाह ऐसा ङित् आदेश विकल्पसे होता है । (सूत्रमें से डाहङमें) ङ् इत् होनेसे, (ह का) उच्चार सानुनासिक
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