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घटेर्गड: ।। ५८ ।।
त्रिविक्रम - प्राकृत-व्याकरण
घटति धातुको गड ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा. - गडइ
( विकल्प पक्ष में ) - घडइ ॥ ५८ ॥
समो गलः ।। ५९ । सम् (उपसर्ग) के अगले घटति धातुको गल होता है | उदा. संगलइ | (विकल्पपक्ष में ) - संघडइ ॥ हासेन स्फुटतेर्मुरः ।। ६० ।।
ऐसा आदेश विकल्पसे
५९ ॥
हास इस करण के साथ प्रयुक्त किए जानेवाला जो 'स्फुट विकसने'मेंसे स्फुट् धातु, उसको मुर ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा. - मुरइ, हासेन स्फुटति, ऐसा अर्थ ॥ ६० ॥
मण्डेष्टिविडिकरिडचिञ्वचिचिलचिञ्चः ॥। ६१ ।।
'मडि भषायाम् ' में से मण्ड् धातुको टिविंडिक, रिड, चिञ्च, चिञ्चिल्ल, चिञ्चअ ऐसे पाँच आदेश विकल्पसे होते हैं | उदा. टिविटिक्कर | रिडइ चिञ्चइ | चिचिल्लर | चिञ्चअइ । विकल्पपक्षमें - मण्डइ || ६१ ||
तु डिरुल्लुकणिल्लुकोल्लूरोक्खुडलुक तोडखुडखुडान् ।। ६२ । ।
' तुड तोडने 'मेंसे तुड् धातुको उल्लुक्क, णिलुक, उल्लूर, उक्खुड, लुक्क, तोड, खुट्ट, खुड ऐसे आठ आदेश विकल्पसे होते है | उदा. - उलुकइ । पिल्लुकइ । उल्लूरइ | उक्खुडइ | लुक | तोडइ । खुट्टइ । खुडइ । विकल्पपक्ष में- तुडइ । पर तुट्ट रूप त्रुटू घातुसे; (यह धातु) शकादि ठमें होनेसे, द्वित्व होकर (२.४.६३), तुइ रूप होगा ॥ ६२ ॥
घुसलविरोलो मन्थेः ।। ६३ ।।
'मन्थ विलोडने' मेंसे मन्थ् धातुको घुसल, विरोल ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं | उदा. - घुसलइ । विरोलइ । (विकल्पपक्ष में ) - मन्थइ || ६३ ॥
सोत्थौ विवृतिरुध्योः ॥ ६४ ॥
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'ऋतु वर्तने' मेंसे वृत् धातुके पीछे वि उपसर्ग होनेपर, और 'रुधि आवरणे'मेंसे रुधू, इन धातुओंको क्रमसे ढंस, उत्थंघ ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा.-ढंसह । विकरूपपक्ष में- विवहह । उत्यंषह । विकरूपपक्षमें - रुंधइ ॥ ६४ ॥
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