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________________ त्रिविक्रम-प्राकृत-प्याकरण हादेवअच्छलणिचश्च ॥ ११९ ॥ णिच्-प्रत्ययान्त और णिच्-प्रत्ययरहित हादयति धातुको भवाच्छ ऐसा लित् आदेश होता है । उदा.-अवअच्छइ (पानी) हादते हादयति वा॥११॥ निर्मेनिम्मवनिम्माणौ ॥१२० ॥ निर (उपसर्ग) पूर्वमें रहनेवाले मिमीते धातुको निम्मव और निम्माण ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-निम्मवइ । निम्माणइ । 'भादेस्तु' (१.३.५३) सूत्रानुसार, (न का) होनेपर-णिम्मवइ । णिम्माणइ । विकल्पपक्षमें-णिम्मइ ॥ १२० ॥ आल्लीङोल्लिः ॥१२१॥ - आ (भाङ्) (उपसर्ग) पीछे होनेवाले लीयति धातुको अल्लि ऐसा आदेश होता है। उदा.-अल्लिइ । अल्लिअइ अल्लीणो ॥ १२१ ॥ क्रियः कीणः ।। १२२ ॥ क्रीणाति धातुको कोण ऐसा आदेश होता है। उदा.-कीणइ ॥१२२॥ केर च वेः ॥ १२३ ॥ वि उपसर्गके आगे होनेवाले क्रीणाति धातुको केर ऐसा (आदेश) होता है; और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण कोण (आदेश भी होता है)। (केर में) र इत् होनेसे, (के का) द्वित्व (के) होता है। उदा.-विक्केइ । विक्कीणइ॥१२३॥ स्त्यः समः खा ॥ १२४ ॥ _ 'स्त्यै ष्ट्यै शब्दसंघातयोः' मेंसे स्स्यै धातु (यहाँ अभिप्रेत है)। सम् (उपसर्ग) पीछे होनेवाले स्त्यै स्स्यायति) धातुको खा ऐसा आदेश होता है। उदा.-संखाइ । संखाअइ। संखाअं॥ १२४ ॥ भ्मो धुमोदः ॥ १२५॥ __'ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः मेसे ध्मा धातु (यहाँ अभिप्रेत है)। उद् (उपसर्ग)के अगले ध्माको धुमा ऐसा आदेश होता है। उदा.-उद्घमाइ ॥ १२५ ॥ स्थष्ठकुकुरौ ॥ १२६॥ 8 उदू (उपसर्ग) के अगले 'ष्ठा गतिनिवृत्ती से ष्टा धातुको ठ और कुकर ऐसे आदेश होते हैं। उदा.-उद्वइ । उक्कुंरइ ।। १२६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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