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त्रिविक्रम-प्राकृतः-ध्याकरण
निवृपतोणिहोडो वा ।। ९३ ॥
(इस सूत्रमें २.४.९२ से) णिचोः पदकी अनुवृत्ति है। णिच् प्रत्ययान्त, नि (उपसर्ग) जिसके पूर्व है ऐसा वृ (वृन् ) और पत् (पति) इन धातुओंके स्थानपर णिहोड ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.णिहोडइ निवारयति पातयति वा। विकल्पपक्षमें-णिवारेइ । पाडेइ ।।९३।। 'धवलोद्घटोर्दुमोग्गौ ॥ ९४ ।।
__(इस सूत्रमें. २.४.९३ से) वा पदकी अनुवृत्ति है। णिच् प्रत्ययान्त धवलयति और उत् (उपसर्ग) पूर्व होनेवाला घटयति, इनको विकल्पसे दुम
और उग्ग ऐसे आदेश यथाक्रम होते हैं। उदा.-दुमइ । उग्गइ। विकल्प“पक्षमें-धवलेइ। उग्घाडेइ । 'अचोऽचाम्' (२.४.७१) सूत्रानुसार, दुममेंसे (उ का) अ होनेपर-दमि धवलिअं ।। ९४ ।।
भ्रमवेष्टयोस्तालिअण्टपरिआलौ ।। ९५ ।।
णिच्-प्रत्ययान्त ऐसे भ्रम् और वेष्ट धातुओंको तालिअण्ट और परिआल ऐसे ये (आदेश) यथाक्रम विकल्पसे होते हैं। उदा.-तालिअण्टइ विकल्पपक्षमें-भमाडइ। भमाडे । भामइ। भामावइ। भामावेइ। वेष्टपरिआलइ। विकल्पपक्षमें-वेढइ ।। ९५ ॥ रावो रञ्जयतेः ।। ९६ ।।
णिच्-प्रत्ययान्त रञ्जयति धातुको रात्र ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-रावेइ। विकल्पपक्षमें-रजेइ ।। ९६ ।। तुलिडोल्योरोहामरक्खोलौ ॥ ९७ ।।
. णिच्-प्रत्ययान्त तुलयति और दोलयति नामधातुओंको यथाक्रम ओहाम और रक्खोल ऐसे. ये (आदेश) विकल्पसे होते हैं। उदा.ओहामइ 1 रक्खोलइ । विकल्पपक्षमें-तुलइ । डोलइ ।। ९७ ।।
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