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________________ हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा.४ १६५ छर् गमिष्यमासाम् ॥ ५० ॥ गम् , इष्, यम् और आस् धातुओंके अन्त्य वर्णका छ होता है। (सूत्रमेंसे छर् में) र् इत् होनेसे) (छ का) द्वित्व (=च्छ) होता है। उदा.गच्छइ । इच्छइ । जच्छइ। अच्छह ॥ ५० ॥ रुधो धम्भौ ।। ५१ ॥ रुध् धातुके अन्त्य वर्णको न्ध और म्भ ऐसे ये आदेश होते हैं। उदा.-रुन्धइ । रुम्भ ।। ५१ ॥ युधबुधगृधक्रुधसिधमुहां च ज्झः ॥ ५२ ॥ युध, बुध् , गृध, क्रुध्, सिध् , मुह इन धातुओंके, तथा (सूत्रमेंसे) चकार के कारण रुध् धातुके, अन्त्य वर्णका द्विरुक्त झकार (=ज्झ) होता है। उदा.-जुज्झइ । बुज्झइ । गिज्झइ। कुज्झइ । सिज्झइ । मुल्झइ । रुज्झइ ॥ ५२ ।। जर् स्त्रिदाम् ॥ ५३॥ स्विद् प्रकारके धातुओंके अन्त्य वर्णका ज होता है। (सूत्रमेंसे जर में) र् इत् होनेसे, (ज का) द्वित्व (ज) होता है। उदा.-सिजइ । सव्यंगसिरीए संपज्जइ, सांगश्रिया संपद्यते। खिजइ । प्रयोगका अनुसरण करें, इसलिए (स्त्रिदाम् ) ऐसा बहुवचन (सूत्रमें) है ।। ५३ ।। छिदिभिदो न्दः ॥ ५४ ॥ छिद् और भिद् धातुओंके अन्त्य वर्णको न्द, ऐसा आदेश होता है उदा.-छिन्दइ। भिन्दइ ।। ५४ ॥ द: कथिवर्धाम् ॥ ५५॥ क्वथ् और वृध् धातुओंके अन्त्य वर्णका ढ होता है। उदा.-कढइ । बड्ढइ । (सूत्रमें वर्धाम् ऐसा) बहुवचन होनेसे, जिसमें गुण किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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