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-प्राकृत-व्याकरण
१५० असिसष्टाश्च ।। ४० ॥
सिस् के यानी पंचमी विभक्तिके स्थानपर टास् यानी तृतीया विभक्ति, और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण सप्तमी विभक्ति कचित् आती है। उदा.-चोरेण बीहइ, चोराद् बिभेति। अंतेउरे रमिअ आगओ, अन्त:पुरात् रन्वा आगतः ॥ ४० ॥ डिपोऽस् ।। ४१ ॥
डिप् के यानी सप्तमी विभक्तिके स्थानपर अम् यानी द्वितीया विभक्ति कचित् आती है। उदा.-विज्जुज्जोअं भरइ रई, विद्युयोते स्मरति रतिम् ॥ ४१ ॥ लुक् क्यङोर्यस्य तु ।। ४२ ॥
क्यङ् से अन्त होनेवाले शब्द के द्विवचनके आगे और क्यषसे अन्त होने वाले शब्दसे संबंधित होनेवाले य का लोप विकल्पसे होता है । उदा.क्य-गुरूअइ गुरूइ (यानी) अगुरुर्गुरुर्भवति या गुरु रिवाचरति । क्यषधमचमाअई धमधमाइ । लोहिआअइ लोहिआइ ॥ ४२ ।।
---- द्वितीय अध्याय तृतीय पाद समाप्त
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