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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. ३
तादर्थे उस्तु ॥ ३६॥
तादर्य (उसके, अमुकके) के लिए कही हुई ङे यानी चतुर्थी एकवचनके स्थानपर ङम् यानी षष्ठी विभक्ति विकल्पसे आती है। उदा.देवस्स, देवाअ, देवार्थम् ऐसा अर्थ। .:, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण)देवाणं ।। ३६ ।। वधाड्डाइ च ।। ३७ ।।
(इस सूत्रमें २.३.३६ से) तु पदकी अनुवृत्ति है। वध शब्दके आगे आनेवाले डे यानी चतुर्थी एकवचनके स्थान पर डित् आइ ऐसा आदेश, तथा पष्ठी और चतुर्थी (एकवचन प्रत्यय) आते हैं। उदा.-वहाइ चहस्स बहाअ (यानी) वधके लिए ऐसा अर्थ ।। ३७ ।। क्वचिदसादेः ।। ३८।।
अस् यानी द्वितीया विभक्ति। अस् इत्यादि विभक्तियोंके स्थानपर कचित् षष्ठी विभक्ति आती है। उदा. सीमंधरस्स वन्दे, सीमंधरं वन्दे । तिस्सा मुहस्स भरिमो, तस्या मुखं स्मरामः। यहाँ द्वितीयाके स्थानपर (षष्ठी आई है)। धणस्स लद्धं, धनेन लब्धम् । तेसिमेसमणाइण्णं, तैरेतद् अनाचीर्णम् । यहाँ तृतीयाके स्थानपर (षष्ठी आगयी है)। चोरस्स बीहइ, चोराद् बिभेति । इमाण पाअन्तसहिआण इअरांई लहुअक्खराई ति, एभ्यः पादान्तसहितेभ्य इतराणि लध्वक्षराणि । यहाँ पंचमीके स्थानपर (षष्ठी आई है)। वणसिरिपट्ठीऍ कबरि ब, वनश्रीपृष्ठे कबरीव । यहाँ सप्तमीके स्थानपर (पष्ठी आगयी है) ॥ ३८ ॥ अस्टासोर्डिप ॥ ३९।।
__ अस यानी द्वितीया विभक्ति; टास् यानी तृतीया विभक्ति; उन दोनों के स्थानपर ङिप यानी सप्तमी विभक्ति कचित् विकल्पसे आती है। उदा.-गामे वहा मि, णअरे णआमि, ग्रामं वहामि, नगर नयामि । यहाँ द्वितीयाके स्थानपर (सप्तमी हुई है)। तेसु अलंकिआ पुहवी, तैरलंकृता पृथिवी। यहाँ तृतीयाके स्थानपर (सप्तमी विभक्ति आई है)॥ ३९॥
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