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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. ३
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अम्ह मम मज्झ मह डिपि ।। २७ ॥
- सप्तमी विभक्ति (के प्रत्यय) आगे होनेपर, अस्मद् शब्दको अम्ह, मम मज्झ, मह ऐसे चार आदेश प्राप्त होते हैं । ङिप के प्रत्यय यथाप्राप्तही होते हैं। उदा.-ङिमें-अम्हम्मि ममम्मि मज्झम्मि महम्मि । सुप्में-अम्हेसु ममेसु मज्झेस महेसु । (इस प्रत्ययके पूर्व अन्त्य अ का) ए विकल्पसे होता है, इस मतानुसारअम्हसु ममसु मज्झसु महसु ) कुछके मतानुसार, (इस प्रत्ययके पूर्व अन्त्य अ का) आ होता है । उदा.-अम्हासु ममासु मज्झासु महासु । 'क्त्वासुपोस्तु सुणात्' (१.१.४३) सूत्रानुसार, अनुस्वार प्राप्त होनेपर-अम्हेसुं ममेसुं मज्झेसु महेसुं। अम्हसु ममसुं मज्झसु महसु। अम्हासु ममासु मध्झासु महासुं। इसीप्रकार (कुल) अठारह रूप होते है ॥ २७ ॥ चतुरो जश्शस्भ्यां चउरो चत्तारो चचारि ।। २८ ।।
जस् और शम् प्रत्ययोंके साथ चतुर शब्दको चउरो, चत्तारो, चत्तारि ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-चउरो चत्तारो चत्तारि चिट्ठन्ति पेच्छ चा ॥ २८॥ तिण्णि त्रेः ॥ २९ ॥
(इस सूत्रमें २.३.२८ से) जश्शस्भ्याम् पद (अध्याहृत) है । जस् और शस प्रत्ययोंके साथ नि शब्दको तिण्णि ऐसा आदेश होता है ।उदा.- तिणि पुरिसा महिला वणाणि वा चिट्ठन्ति पेच्छ वा ॥ २९ ॥ दोण्णि दुवे बेण्णि द्वे ॥ ३० ॥
. जस् और शस् प्रत्ययोंके साथ द्वि शब्दको दोष्णि, दुवे, बेणि ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-दोण्णि दुवे बेणि महिला चिट्ठन्ति पेच्छ वा। 'संयोगे' (१.२.४०) सूत्रानुसार हस्व होनेपर, दुण्णि, चिण्णि (ऐसे रूप होते
दो बे टादौ च ।। ३१ ॥
(इस सूत्रमें २.३.३० से) द्वेः पद (अध्याहृत) है । टादि यानी तृतीया, इत्यादिके विभक्तिप्रत्यय आगे होनेपर, द्वि शब्दको दो और बे ऐसे आदेश होते हैं। (सत्र से) चकारके कारण, जस् और शस् प्रत्ययोंके सहित (द्वि को
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