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________________ हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. २ १३१ बहूलका अधिकार होनेसे, क्वचित् ओ भी होता है। उदा.-अम्मो भणामि भणिए ।। ४५।। हबलीदूतः।। ४६॥ ___ संबोधनके निमित्तसे, (शब्दों के अन्त्य) ई और ऊ लित् (=नित्य) हस होते हैं। उदा.-हे णइ । हे लच्छि । हे वहु ॥४६॥ किपः ॥ १७॥ अब संबुद्धेः पदकी निवृत्ति हो गई। किबन्त के रूपमें आनेवाले ई और ऊ इनका हस्व होता है। उदा.-गामणिणा । खलपुणा। गामणिसुंतो। खलपुहि ।। ४७ ।। उदृतां त्वस्वमामि ॥ ४८ ॥ ___अस्थमामि यानी सु, अम् और आम् प्रत्ययोंको छोडकर, अर्थात् अन्य विभक्ति-प्रत्यय आगे होनेपर, (हस्व) ऋकारान्त शब्दोंमें (ऋ का)उ विकल्पसे होता है। उदा.-जस् प्रत्यय (आगे होनेपर)-भत्त भत्तुणो भत्तओ भत्तउ । विकल्पपक्षमें-भतारा । शस् (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्त भत्तुणो। विकल्पपक्षमें-भतारा। टा (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्तुणा। (विकल्पपक्षमें) भत्तारेण । भिस् (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्तहिं । विकल्पपक्षमें-भत्तारोहिं । अति (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्तहितो भत्तुत्तो भत्तओ भत्तूउ भत्तूणो। विकल्पपक्षमें -भत्ताराहिंतो भत्तारत्तो भत्ताराउ भत्तारा भत्ताराहि । ङस् (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्तुणो भत्तुस्स । विकल्पपक्षमें-भत्तारस्स। ङि (प्रत्यय आगे होनेपर)-भत्तुम्मि । विकल्पपक्षमें-भत्तारे। सुप् (प्रत्यय आगे होनेपर)भत्तसु । विकल्पपक्षमें:-भत्तारेसु । (ऋतां यानी ऋदन्तानां यह) बहुवचन व्याप्ति दिखानेके लिए है; इसलिए (वाङमयमें) दिखाई देगा वैसा संज्ञाओंमें (अन्त्य ऋ का) उ विकल्पसे होता है। उदा.-जस्, शस्, ङसि, ङस् (प्रत्यय आगे होनेपर उ होता है)। उदा.-पिउणो। जामाउणो। टा-भाउणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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