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________________ द्वितीयः पादः वीप्सात्तिदचि सुपो मस्तु ।। १ ।। ___ वीप्सार्थी पदके आगे होनेवाले विभक्ति-प्रत्ययके स्थान पर, तदचि यानी उस वीप्सार्थ वाचकसे संबंधित रहनेवाला स्वर आगे होनेपर, म विकल्पसे (बीचमें) आता है। उदा.-एकैकम् एकमेकं । एकैकेन एक्कमेक्केण । अंगे अंगे अंगमंगम्मि। विकल्पपक्षमें-एक्केकं इत्यादि ।। १॥ अमः ।। २ ।। . (इस सूत्रमें २.२.१ से) सुपः पदकी अनुवृत्ति है। संज्ञाके आगे आनेवाले विभक्तिप्रत्ययसे संबंधित होनेवाले अमः यानी द्वितीया एकवचनके स्थानपर मकार आता है। उदा.-वच्छं। मालं। गिरिं । गामणिं । तरूं। वहुं ।।२।। ग्जश्शसोः ___संज्ञाके आगे होनेवाले जस् और शस् इन दोनोंका लोप होता है। (सूत्रके श्लक्में) श् इत् होनेसे, पिछला (पूर्व) स्वर दीर्घ होता हैं । उदा.वच्छा । माला । गिरी। गोरी। गामणी । तरू। वहू चिट्ठन्ति पेच्छ वा ॥३॥ णशामः ॥ ४ ॥ . संज्ञाके आगे आनेवाले षष्ठी बहुवचनके आम् (प्रत्यय) को णश ऐसा आदेश होता है । (सूत्रके णश्में) श् इत् होनेसे, पूर्व स्वर दीर्घ होता है। उदा.-वच्छाण । वणाण। मालाण। गंगाण । गिरीण। दहीण । बुद्धीण । गामणीण । सुधीण । गोरीण । तरूण । महण । वहूण । 'क्त्वासुपोस्तु सुणात् ' (१.१.४३) सूत्रानुसार, विकल्पसे अनुस्वार आनेपर - वच्छाणं । गिरीणं । इत्यादि ।। ४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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