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हिन्दी अनुवाद-अ. २, पा. १
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लोप हुआ है। (२९) चंडिको कोपः। चण्ड शब्दके आगे कोप अर्थमें डिक्क (=डित् इक्क) प्रत्यय आया । (३०) चण्डिज्जो पिशुन और कोप। चंड शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें डिज्ज (=डित् इज्ज) प्रत्यय आया । (३१) कुम्मणो म्लानः । ग्लायति धातुको कुम्म आदेश होकर आगे ण आगया। (३२) अच्छिहरुल्लो द्वेष्य । अक्ष्णोः हरः (आँखोंका हरण करनेवाला, अक्षिहरः), अदर्शनीय होनेसे । अक्षिहर शब्दके आगे स्वाथे डुल्ल (=डित् उल्ल) प्रत्यय आया। (३३) छाइल्लो रूपवान् । छाया शब्दको अस्ति अर्थम डिल्ल (डित् इल्ल) प्रत्यय लगा; कान्तिमान् यह अर्थ । (३४) कुडुंगो कुडगो कुडुक्को लतागृह । कुड शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें डुंग, डंग और डुक्क (=डित् उंग, अंग, और उक्क) प्रत्यय लगे हैं। (३५) जरण्डा वृद्धः । जरति धातुको अण्ड प्रत्यय लगा। (३६) अच्छिविअच्छी परस्पराकृष्टिः (परस्पर आकर्षण)। आकर्षीत व्याकर्षति इसमें कृष के स्थानपर विअच्छी (ऐसा आदेश आगया)। (३७) धूमरी तुहिन । धूमवत् (धूमकी तरह) यानी धूमरी । यहाँ उपमानार्थमें री है। (३८) सोती तरङ्गिणी। यहाँ स्रोतस् शब्दके आगे अस्ति अर्थम डी (डित् ई) आया, त का द्वित्व हुआ । (३९) अहिसिओ (यानी) ग्रहशंकासे रोनेवाला । अभिसीदति धातुको कहे हुए अर्थमें डिक (डित् इक) प्रत्यय लगा। (४०) गावी गौः । गो शब्दके आगे स्त्रीलिंगका डावी (डित् आवी) प्रत्यय आगा। (४१) उत्थल्लपत्थल्ला (यानी) पार्श्वयुगापवृत्ति । उत्स्थल और प्रस्थल शब्दोंके आगे पार्श्व द्वय अप्रवृत्ति इस अर्थमें डा (-डित् आ) आया और ल का द्वित्व हुआ। (४२) गज्जिलिओ (यानी) अंगको स्पर्श होनेपर आनेवाला हास्य और पुलक । 'अंगको स्पर्श होनेपर सानेवाला हास्य और पुलक' इन अर्थमें गर्दा धातुको इलिअ प्रत्यय लग गया। (४३) चित्तलं रम्यम् । चित्त लाति इति । (४४) पाडहुओ प्रतिभूः (यानी) जामिन । प्रतिभू शब्दके आगे स्वार्थे डुकण (डित् उकण) प्रत्यय आया और इ का अ हो गया। (४५) पासणिओ पासाणिओ साक्षी। साक्षात् पाव नीयते अनेन इति; पार्श्व के आगे आनेवाले नी धातुको डिक (डित् इक) प्रत्यय लगा। (४६) अवरिज्जं अद्वितीयम् । अवर शब्दके आगे भाव अर्थमें डिज्ज (डित् इज्ज) प्रत्यय लगा। (४७) लाहिल्लो लम्पटः । लाभ शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें डिल्ल (डित् इल्ल) प्रत्यय आया। (४८) कडिल्लं (यानी) गहनं,
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