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________________ हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. १ २९ खस्य सर्वाङ्गात् ।। ५ ॥ ___सर्वाङ्ग शब्दके आगे 'व्यापक' अर्थमें कहा हुआ जो ख प्रत्यय, उसका इक होता है। उदा.-सर्वाङ्गीण: सबंगिओ ॥ ५ ॥ छस्यात्मनो णअः ।। ६ ॥ आत्मन् के आगे आनेवाले छ प्रत्ययको णम ऐसा आदेश होता है। उदा.-आत्मीयम् अप्पणअं॥ ६॥ हित्थहास्त्रलः ॥ ७ ॥ ____ सप्तम्यन्त सर्वनामोंके संबंधम कहे हुए त्रल् प्रत्ययको हि, त्थ और ह ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-यत्र जहिं जत्थ जह । तत्र तहिं तत्थ तह । कुत्र कहिं कत्थ कह । अन्यत्र अण्णहिं अण्णत्थ अण्णह ॥ ७ ॥ केर इदमर्थे ॥ ८ ॥ (अमुकका) यह इस अर्थमें (इदमर्थे) कहे हुए छ प्रत्ययको केर ऐसा आदेश होता है। उदा,-युष्मदीयः तुम्हकेरो। अस्मदीयः अम्हकेरो ! क्वचित् (ऐसा आदेश) नहीं होता। उदा.-मदीयपक्षः मइज्जपक्खो। पाणिनीयम् पाणिणीयं ॥ ८॥ राजपराड्डिकडक्कौ च ॥ ९ ॥ __गजन् और पर इनके आगे इदमर्थमें कहे हुए प्रत्ययको डित् इक्क और अक्क ऐसे ये (आदेश) होते हैं । (सूत्रमेंसे) चकारसे (इन शब्दोंके आगे) केर आदेशभी आता है । उदा.-राजकीयम् राइक्कं राअक्कं राअकरं । परकीयं परिक्कं परकं परकरं ॥ ९ ॥ डेच्चओ युष्मदस्मदोऽणः ।। १० ॥ युष्मद् और अस्मद् इनके आगे इदमर्थमें आनेवाले अण् प्रत्ययको डित् एच्चअ ऐसा आदेश होता है। उदा.-यौष्माकम् तुम्हेच्चअं। आस्माकम् अम्हेच्चों ॥ १० ॥ वर्वतेः ।। १ ।। उपमान अर्थमें कहे हुए वति प्रत्ययको वर ऐसा आदेश होता है। (वर् में) र् इत् होनेसे, ( का) द्वित्व होता है। उदा.-महुर व पाडलिउते पासाआ," मथुरावत् पाटलिपुत्र प्रासादाः ॥ ११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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