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________________ हिन्दी अनुवाद - अ. १, पा. ४ (८९) कालं तमिस्र (यानी) अंधकार, नील होनेसे । (९०) भट्टिओ (यानी ) विष्णु । भर्तृक; कारण वह जगका पोषक है । यहाँ 'ऋ' का 'इ' हुआ है । (९१) इंदग्गिधूमं तुहिन [ यानी] हिम । इन्द्रग्निधूमः । (९२) पत्थरं [ यानी ] पादताडन । फत्तरकी तरह होनेसे प्रस्तर, दुःसह होनेसे । (९३) ओवाअलो [ यानी ] अस्तकाल । अपातपः । (९४) पिउच्छा (९५) माउआ सखी | बुआ और मा की तरह होने से । (९६) पोरस्थो [ यानी ] मत्सरी । पौलस्त्यवत् । (९७) दोसो [ यानी] कोप । अपना दोष होने से । (९८) चच्चां चर्चा [ यानी ] तलाहतिः । (९९) पम्हलो केसर | पक्षमलसे युक्त | [१०] खंधलट्ठी [१०१] खंधमसो [ यानी ] भुजस्कंधकी र्याष्ट | स्कंध प्रमृशति इति । (१०२) अग्गिआओ (१०३) तंबकिमी इन्द्रगोप (लाल कीटक ) । अनिकी तरह जिसका देह है वह, अग्निकायः । ताम्रकृमि: । (१०४) विहाडणो अनर्थ । विघाटनम् । (१०५) जोइओ ज्योतिरिंगण (यानी ) खद्योत ( जुगनू ) । (१०६) सिंजिरो ध्वनि । शिंजनही । (१०७) जोइसो (१०८) जोभणा (१०९) जोडो (११०) खओओ, खद्योत अर्थमें । तारका । ज्योतिषं जोइस । द्योतना जोअणा । द्योतः जोडो । (यहाँ ) त का ड हुआ है । खे द्योतते ( आकाश में चमकता है), इसलिए खद्योतः खजोओ । (१११) दरवल्लहो कान्त । दर याना भय, वहाँ वल्लभ । (११२) काअरो कातर यानी भीरु । वियोगभीरु होनेसे । ( ११३) पण्डरंगो (पानी) महेश्वर । धवल अंग होने से । ( ११४) भोइओ ग्रामेश | भोगं चरति इति ( भोग लेता है इसलिए ) भोगिक । ( ११५) सग्गहो मुक्त । सुष्ठु अग्रहः, स्वग्रहः । ( ११६ ) संकरो (यानी ) रास्ता । जहाँ संकर होता है वह संकर | (११७) पअरो (यानी ) अर्थकी दृष्टिसे उत्कृष्ट | अर्थ में प्रकर्षेण वरः ( प्रवरः ) | ( ११८) मइमोहिणी (यानी ) सुर । मतिमोहिनी | (११९) धारावासी (यानी ) मंडूक । वर्षांमें उत्पन्न होनेसे । (१२०) कमलं (यानी ) मुख और कलह । कमलकी तरह होनेसे कमल । कं मस्तकं मलति इति (कं यानी मस्तकको ताप देता है इसलिए ) कमल (कलह ) | ( १२१) वेणुसाओ (१२२) धुअराओ (यानी ) भ्रमर । वेणुकी तरह जिसका शब्द है वह वेणुसाओ (वेणुशब्दः); यहाँ (ब्द इस ) संयुक्त व्यंजनका लोप हुआ है । रुवरागः, कारण वह सदा सुस्वर है । इत्यादि । इस गणमें (शब्दोंका) लिंग परिवर्तन ( वाङ्मयीन ) प्रयोगके अधीन होता है ॥ १२१ ॥ प्रथम अध्याय चतुर्थ पाद समाप्त त्रि.वि ७ Jain Education International ---- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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