________________
૪૫૫
बायवागा. 3. कलहपत्तहो (कलहप्राप्तार्थः) मा मासात. ४. पयइत्थं (प्रकृतिस्थम् ) वालावि. ५. उत्तमंगं (उत्तमाङ्गम् ) मस्त.
(13) १. बारवईए (द्वारवत्याम् ) ६।२४१ नसभा. २. संबाईणं (शाम्बादीनाम् ) शाम वगेरे सुभाने. 3. नत्तुस्स (नप्तुः) पौत्र. ४. फलए (फलके, चित्र५मां. ५. अहन्ना (दे०) पेट पाभ्या, व्यास प्या. १. पच्छो (पश्चात्तः) पाथी. ७. अन्भुवगच्छाविओ (अभ्युपगमितः) स्वी॥२ शव्यु. ८. आलो (आलः) माण, होपारे।५। ८. पडिरूवं (प्रतिरूपम् ) समान, "विधा व भाभेसा न ३५ मनावीन”. १०. दसाराइणो (दशाहराजानः) समुद्रविश्य आदि ६श नमो. ११. अंबाडियो (तिरस्कृतः) ति२२१२
शयो. १२. तंबियाओ (ताम्रिका:) diमानी सोयो. १३. अक्खोडियाओ (आक्षोदिताः) पोसा. १४. तंबकुदृग० (ताम्रकुट्टक०) તાંબાને કૂટનાર.
(१४) १. पण्हिपहारं (पाणिप्रहारम् ) पनी पानाने प्रक्षा२-सात भा२वी २. सुहुयहुयासणे (सुहुतहुताशने) सारी शत भाये। अग्निमां. 3. छुब्भर (क्षिप्यते नमाय. ४. आसंधयप्पहाणा (दे० स्नेहप्रधाना) विश्वासपात्र-मतिरनेवाणी. ५. ससीसवायं (सशीर्षपादम् ) मस्त मने ५५ सखित.. सीलदरिदं (शीलदरिद्रम) शीस-त्तम मायर' २डितने.
१. गाहावई (दे० गृहपति.) स्थ. २. पयइभद्दओ (प्रकृतिभद्रकः) स्वमाथी स२१. 3. ओलमिाउं (अवलगितुम् ) सेवा-मस्ति ४२वान. ४. महंतस्स (महतः) नगरी भुण्य 'भत्री-श्रेष्ठी कोरे.' ५. समाइच्छियं (दे० समागतम् ) सन्मान ४रायेस. १. नियच्छतो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org