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________________ هههههههههههههههههههههه | अध्याय 2 שששששששששששששששששששששש अर्द्धमागधी आगम साहित्य और आगमिक व्याख्याओं में गुणस्थान की अवधारणा त्र अर्द्धमागधी आगम साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा समग्र जैन सिद्धान्तों का आधार द्वादशांगी है। दिगम्बर परम्परा वर्तमान में द्वादशांगी का अभाव मानती है और अपने . आगम तुल्य ग्रन्थों का आधार मुख्य रूप से दृष्टिवाद का आंशिक ज्ञान मानती है। जहाँ तक श्वेताम्बर परम्परा का प्रश्न है, वह दृष्टिवाद का विच्छेद मानती है, किन्तु शेष एकादश आगमों के अस्तित्व को स्वीकार करती है। यद्यपि वह भी अंगबाह्य ग्रन्थों के लिए दष्टिवाद के आंशिक ज्ञान को ही आधारभत स्वीकार करती है। इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जैन दर्शन के विभिन्न सिद्धान्तों का मूल स्रोत आगम साहित्य ही माना जाता है। जहाँ तक गुणस्थान सिद्धान्त का प्रश्न है, वहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि क्या इस सिद्धान्त का मूल स्रोत या आधार आगम साहित्य है? डॉ.सागरमल जैन ने अपने ग्रन्थ 'गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण' में यह माना है कि गुणस्थान सिद्धान्त का आधार श्वेताम्बर आगम साहित्य नहीं है । वे समवायांग सूत्र में चौदह गुणस्थानों का नाम उल्लेख करने वाली गाथा को भी कालान्तर में प्रक्षिप्त मानकर स्पष्ट रूप से यह प्रतिपादित करते हैं कि गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव और विकास एक परवर्ती घटना है और यह वल्लभीवाचना के पश्चात् ही अपने विकसित स्वरूप में अस्तित्व में आया है। यद्यपि वे यह मानते हैं कि गुणस्थान सिद्धान्त के मूल बीज के रूप में कुछ अवस्थाओं एवं गुणश्रेणियों की चर्चा तत्त्वार्थसूत्र, उसके स्वोपज्ञभाष्य तथा आचारांग नियुक्ति आदि में मिलते हैं। उनका यह कथन तो सत्य है कि श्वेताम्बर मान्य आगम साहित्य में समवायांग को छोड़कर कहीं भी चौदह गुणस्थानों का एक साथ उल्लेख नहीं है। भगवतीसूत्र और प्रज्ञापनासूत्र जैसे विश्लेषणात्मक आगमों में भी गुणस्थानों की कोई सुस्पष्ट चर्चा हमें देखने को नहीं मिलती है, किन्तु इस आधार पर यह निर्णय निकाल लेना कठिन होगा कि आगमकाल में गुणस्थानों की अवधारणा का पूर्णतः अभाव था। यदि इस प्रश्न को एक ओर भी रखें कि समवायांगसूत्र की गाथा प्रक्षिप्त है या नहीं? फिर भी हमने अपनी गवेषणा के आधार पर यह पाया है कि चाहे आगमों में गुणस्थान सिद्धान्त का स्पष्ट रूप से उल्लेख न हुआ हो, किन्तु गुणस्थानों से सम्बन्धित विभिन्न अवस्थाओं का उल्लेख हमें आगम साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलता है । आगे हम इसी आधार पर क्रमशः विभिन्न आगमों को लेकर चर्चा करेंगे। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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