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________________ गु / - गुणानुरागी, गुणपाक्षिक और गुणग्राहकता आत्मोत्थान में सहायक होती है। / णमोक्कार महामंत्र जिनशासन का सार है और नमस्कार महामंत्र का आराधक अपने विकास में स्वावलम्बी बनता है। स्था - स्थान-स्थान पर जैनागमों ने अपने स्वयं को पहचानने की दृष्टि दी है, और सम्पूर्ण सृष्टि का दर्शन कराया है। / / अ - नम्रता धर्म का मूलमंत्र है और नम्र व्यक्ति को आत्म विकास में कोई अवरोध रोक नहीं सकता है। कीमत समझता है जो इस मानव जीवन की वो यथाशक्य श्रेष्ठ कार्य को करने में दक्ष रहता है। अनेकान्तवाद, अनुशासन एवं अहिंसा जिनवाणी के मूल सूत्र है। वस्तु अनेक धर्मात्मक है। अपेक्षा से वस्तु को पहचानने का प्रयास करना चाहिये। धारणा शक्ति जिसके पार, सुरक्षित है। वह व्यक्ति अनेकानेक दृष्टि को विकसित कर सकता है। रत्नत्रयी एवं तत्वत्रयी जीवन साधना की मूलभूत सम्पत्ति है। 'णाणस्स सारंजीव हिंसा किं च न' अर्थात् ज्ञान का सार अहिंसात्मक जीवन है। / धा - Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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