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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
परिशिष्ठ-२........{494} आप्तमीमांसा तत्व दीपिका : समन्तभद्र रचित
सम्पादक :- प्रो. उदयचन्द्र जैन प्रकाशक :- श्री गणेशवर्णी दि. जैन संस्थान, नरिया, वाराणसी मुद्रण :
वर्द्धमान जवाहर नगर कालोनी, दुर्गाकण्ड, वाराणसी-१ आप्त-परीक्षा : विद्यानन्द विरचित टीका
हिन्दी अनुवाद :- डॉ. पं. दरबारीलाल जैन प्रकाशक :- भारत वर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद् जवाहर नगर, वाराणसी मुद्रण :
वर्द्धमान मुद्रणालय, वाराणसी संस्करण :- द्वितीय वी.नि. २५१८, ई. सन् १९६२ आत्मानुशासनम् : गुणभद्र विरचित
सम्पादक :- पं. बालचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री प्रकाशक :- जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर मुद्रक :
कुमुदचन्द्र फूलचन्द्र शाह, मेसर्स सन्मति मुद्रणालय, १६६, शुक्रवार पेठ, सोलापुर - ४१३००२ अष्टक प्रकरण : हरिभद्रसूरिजी
अनुवादक :- डॉ. अशोक कुमार सिंह सम्पादक:- डॉ. सागरमल जैन प्रकाशन :- पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी - ५, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर (राजस्थान) मुदक:
वर्द्धमान मुद्रणालय, भेलूपुर, वाराणसी संस्करण :- प्रथम संस्करण, २००० अष्टप्राभृत
कुन्दकुन्दाचार्य - परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास मुद्रक :
जयंतिलाल दलाल, बंसत प्रिंटिंग प्रेस, घी कांटा रोड़ घेलामाई की बाड़ी, अहमदाबाद आचारांगसूत्र
वाचना प्रमुख :- आचार्य तुलसी संपादक:- मुनि नथमलजी प्रकाशन :- जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.) प्रकाशन तिथि :- वि.स. २०३१, कार्तिक कृष्णा-१३ मुद्रक :
एस. नारायण एण्ड सन्स (७११७), १८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ आध्यात्मिक विकास की भूमिकाएं एवं पूर्णता
लेखक :- आचार्य जयंतसेनसूरीश्वरजी प्रकाशन :- राज राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट, रतनपोल, हाथीखाना, अहमदाबाद (गुजरात) मुद्रक :
श्री एस. कम्प्यूटर सेन्टर, जालोरी गेट के अन्दर, जोधपुर
वीर.नि.सं. - २५२५ वि.स. - २०५४ राजेन्द्रसूरि सं.-६१ ई. सन् - १६६८ प्रथमावृत्ति आचारांग टीका
लेखक :- दीपरत्नसागरजी सम्पादक :- आगमश्रुत प्रकाशन
दिनांक :- १४/४/२००० रविवार २०५६ चैत्र सुदी - ११ आवश्यकसूत्र
वाचना प्रमुख :- आचार्य तुलसी संपादक :- युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशन :- जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.) मुद्रक :
श्री वर्धमान प्रेस, नवीन शाहदरा, दिल्ली - ११०००३२ द्वितीय संस्करण वि.सं. २०५७, वी.नि.सं. २५२७, सन् मार्च २०००
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