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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... सप्तम अध्याय........{435} संस्कृत भाषा में निबद्ध है और उस पर टब्बार्थ मरूगुर्जर में है। इस प्रकार से यह ग्रन्थ एक साथ तीनों ही भाषाओं से सम्बन्धित है । इसकी दूसरी विशेषता यह है कि इसमें आगमिक परम्परा, कर्मग्रन्थकारों की परम्परा और आचार्य परम्परा में गुणस्थान सम्बन्धी चर्चा में जो मतान्तर रहे हैं, उनका निर्देश किया गया है। चौदह गुणस्थान वचनिकाk गुणस्थान सम्बन्धी स्वतन्त्र ग्रन्थों में ढुढारी भाषा में रचित चौदह गुणस्थान वनिका नामक ग्रन्थ के सम्बन्ध में हमें सूचना प्राप्त होती है । सतश्रुतप्रभावना ट्रस्ट, भावनगर ने जैन हस्तलिखित ग्रन्थों का जो सूचीकरण किया है, उसमें से उन्होंने स्वानुभूतिप्रकाश दिसम्बर २००२ के अंक में अप्रकाशित ग्रन्थों की सूची प्रकाशित की है । इस सूची में २६ वें क्रमांक पर चौदह गुणस्थान वचनिका नामक कृति का उल्लेख है। इसके कर्ता के रूप में अखयराज शाह का उल्लेख है । यह कृति ८० पत्रों में लिखित है और अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध है । यद्यपि सूची में इस ग्रन्थ के प्राप्तिस्थान का कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु संभावना यही है कि यह जयपुर के किसी शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हो । इस कृति के सम्बन्ध में यह कहना कठिन है कि यह गुणस्थान सम्बन्धी किसी ग्रन्थ की टीका के रूप में है या स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में है ? दिगम्बर परम्परा में सत्रहवीं शताब्दी से मूल ग्रन्थों पर वचनिका लिखने की परम्परा रही है, किन्तु हमारी जानकारी में चौदह गुणस्थान नामक कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं रहा है, जिस पर यह वचनिका लिखी गई हो। अतः संभावना यही है कि पंचसंग्रह गोम्मटसार आदि के आधार पर स्वतन्त्र रूप से यह चौदह गुणस्थान वचनिका नामक ग्रन्थ लिखा गया होगा। इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए हम प्रयत्नशील अवश्य हैं, फिर भी कृति की झेरोक्स प्रति जब तक उपलब्ध नहीं होती है, तब तक इस निर्देश पर ही संतोष करना होगा ।४१८ श्री मुक्तिसोपान अपरनाम गुणस्थान रोहण अढीशतद्वारी विचारसार प्रकरण अपरनाम गुणस्थान शतक का टब्बार्थ मरूगुर्जर में तथा चौदह गुणस्थान वचनिका ढुढारीभाषा में रचित है । ये दोनों प्राचीन हिन्दी के ही रूप है, फिर भी हिन्दी भाषा की दृष्टि से गुणस्थान के सम्बन्ध में जो सम्पूर्ण ग्रन्थ हमें उपलब्ध होते हैं. उसमें आचार्य अमोलकऋषिजी के इस मुक्तिसोपान अपरनाम गुणस्थानरोहणअढीशतद्वारी का स्थान प्रथम ही कहा जाएगा । गुणस्थान सम्बन्धी हिन्दी भाषा में रचित ग्रन्थों में न केवल कालक्रम की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ प्रथम स्थान रखता है, अपितु विस्तृत विवेचन की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ प्रथम स्थानीय ही है । यह मूल ग्रन्थ के ५२३ पृष्ठ, परिशिष्ट के ४५ पृष्ठ और प्रस्तावना के ४३ पृष्ठ सहित लगभग ६०० पृष्ठों में गुणस्थान सम्बन्धी विवेचना को समाहित किए हुए है । द्वारों की अपेक्षा से भी यदि विचार करें, तो जहाँ देवचन्द्र ने विचारसार प्रकरण में गुणस्थान सिद्धान्त का विवेचन ६६ द्वारों में किया, वहीं अमोलकऋषिजी ने २५२ द्वारों में अपना गुणस्थान सम्बन्धी विवेचन पूर्ण किया है । जहाँ तक हमारी जानकारी है कि २५२ द्वारों में गुणस्थानों का विवेचन करनेवाला यह प्रथम ग्रन्थ है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट रूप से निर्देश किया गया है कि अनेक ग्रन्थों का दोहन करके इस ग्रन्थ की रचना की गई है। __ग्रन्थकार आचार्य अमोलकऋषिजी स्थानकवासी परम्परा के ऋषि सम्प्रदाय से सम्बन्धित है । यह स्थानकवासी परम्परा के समोद्धारक लवजीऋषिजी की परम्परा में हुए थे । ऋषि नामान्त के कारण ही यह परम्परा स्थानकवासी समाज में ऋषि सम्प्रदाय के नाम से जानी जाती है । अमोलकऋषिजी के पूर्वज मरूभूमि के मेडता नामक नगर से आकर मध्यप्रदेश में बसे थे। उनके पिता केवलचन्दजी मध्यप्रदेश के भोपाल नगर में व्यवसाय के लिए आकर रहे । संयोग से केवलचन्दजी की पत्नी का स्वर्गवास हो गया और उन्होंने अपने पुत्र अमोलकचंद के साथ ही खूबाऋषिजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। अमोलकऋषिजी की जन्मतिथि का ४१८ स्वानुभूतिप्रकाश, दिसम्बर २००२, प्रकाशक श्री सतश्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर - ३६४००१, पृ. १७ ४१६ गुणस्थानरोहणअढोशतद्वारी : लेखकः अमोलकऋषिजी, प्रकाशनः शारदा प्रेस अफलगंज चमन, दक्षिण हैदराबाद, वी.सं. २४४१, वि.सं. १६७१, ई.सन् १६१५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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