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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........
गुणस्थान
प्रथम
द्वितीय
ग्यारहवें से
तेरहवें तक
चौदहवें
विकल्प
५
तीसरे से
पांचवें तक
छठे से दसवें तक १
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४
२
१
२
गुणस्थान में गोत्रकर्म के विकल्प
बन्ध
नीच
नीच
नीच
उच्च
उच्च
नीच
नीच
उच्च
उच्च
उच्च
उच्च
उच्च
०
०
०
उदय
नीच
नीच
नीच
नीच
उच्च
नीच
उच्च
नीच
उच्च
नीच
उच्च
उच्च
उच्च
०
उच्च
सत्ता
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पंचम अध्याय......{376}
नीच
नीच उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
नीच - उच्च
घातीकर्मों में आयुष्य कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता की अपेक्षा से कितने विकल्प होते हैं, इसकी चर्चा की गई है। आयुष्य कर्म की चार प्रकृतियाँ है। उदय की अपेक्षा से मिथ्यात्व गुणस्थान में चारों ही गति के जीव होते है । इसी प्रकार बन्ध की अपेक्षा से भी इस गुणस्थान में चारों ही गति के बन्ध की सम्भावना होती है । सत्ता की अपेक्षा से एक साथ दो-दो आयुष्य की सत्ता सम्भव होती है । इसप्रकार मिथ्यात्व गुणस्थान में २८ विकल्प होते हैं। इनमें नारक जीवों की अपेक्षा से पाँच विकल्प, तिर्यंच की अपेक्षा से नौ, मनुष्य की अपेक्षा से नौ तथा देवों की अपेक्षा से पाँच विकल्प होते हैं । इसप्रकार कुल २८ विकल्प होते हैं।
सास्वादन गुणस्थान में मनुष्य और तिर्यंच नरक आयुष्य का बन्ध नहीं करते हैं । अतः मनुष्य के सम्बन्ध में एक विकल्प और तिर्यंच के सम्बन्ध में एक विकल्प कम होने से सास्वादन गुणस्थान में आयुष्य कर्म के बन्ध उदय और सत्ता की अपेक्षा से २६ विकल्प होते हैं ।
उच्च-नीच
उच्च
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