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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... पंचम अध्याय........{375} ___घातीकर्मों में मोहनीय कर्म सम्बन्धी विकल्प अनेक होते हैं, इसीलिए उनकी चर्चा आगे करेंगे । उसके पूर्व आघाती कर्मों की उत्तर प्रकृतियों के बन्ध, उदय और सत्ता सम्बन्धी कितने विकल्प हैं, इसकी चर्चा करेंगे। सप्ततिका नामक षष्ठम कर्मग्रन्थ की ४६वीं गाथा में निम्न उल्लेख मिलता है। उसमें कहा गया है कि प्रथम छः गुणस्थानों में अर्थात् मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक वेदनीय कर्म की दोनों उत्तर प्रकृतियों के आधार पर चार विकल्प बनते हैं। सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में दो विकल्प ही होते हैं । किन्तु चौदहवें अयोगीकेवली गुणस्थान में बन्ध का अभाव होते हुए भी उदय और सत्ता की अपेक्षा से भी चार विकल्प सम्भव होते हैं । ये विकल्प किस रूप में होते हैं, इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता है। | गुणस्थान | विकल्प बन्ध उदय सत्ता प्रथम से लेकर । ४ असाता असाता-साता असाता-साता छः तक साता (१) असाता (२) असाता (३) साता (४) साता असाता असाता-साता साता असाता-साता सातवें से लेकर तेरहवें तक साता असाता-साता (१) साता (२) साता असाता असाता-साता चौदहवें में ४ साता असाता असाता-साता असाता-साता असाता-साता असाता साता असाता-साता गोत्रकर्म की दो उत्तर प्रकृतियों के सम्बन्ध में किस गुणस्थान में कितने विकल्प होते हैं, इसकी चर्चा करते हुए कहा गया है कि प्रथम गुणस्थान में गोत्रकर्म के पाँच विकल्प होते हैं। तृतीय गुणस्थान में चार विकल्प होते हैं । तीसरे, चौथे और पाँचवे गुणस्थान में दो विकल्प होते हैं। छठे से लेकर दसवें गुणस्थान तक एक-एक विकल्प ही होता है । ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में गोत्रकर्म के बन्ध का तो अभाव होता है, किन्तु उदय और सत्ता की अपेक्षा से तो एक ही विकल्प होता है । परन्तु चौदहवें गुणस्थान में बन्ध का अभाव होते हुए भी उदय और सत्ता की अपेक्षा से दो विकल्प होते हैं । ये विकल्प किस रूप में होते हैं । इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता है। Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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