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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{364}
देशविरति गुणस्थान में बन्धहेतुओं के भंग/विकल्प
कुल
क्रमांक
इन्द्रिय असंयम
कायवध
कषाय
बन्ध हेतु विकल्प
युगल
कुलभंग
योग
वेद
भय
जुगुप्सा
/विकल्प
| १३
१] पांच कायवध
तथा भय
X
३x
१३२०
२
पांच कायवध | १३ | तथा जुगुप्सा
३x
१३२०
३/चार कायवध भय | १३
तथा जुगुप्सा
३४
| ११
| १४ |१
६६००
कुल भंग
६२४०
पांच कायवध भय तथा जुगुप्सा
५४ | १४
| ४x |
२४ | ३x
११४
१x
-१
| १३२०
कुल आठ सौ चौसठ भंग होते हैं ।
कषाय| युगल
|
वेद
योग
.
=गुणाकार | भय
४४२४३XE=२१६ ४४२४३XEx9%D२१६
.
.
५ बन्धहेतु ६ भय सहित ६ जुगुप्सा सहित ७ भय-जुगुप्सा दोनों सहित
.
.
४४२४३X६x१=२१६
जुगुप्सा जुगुप्सा
.
.
| ४४२४३४६x9x१=२१६
कुल- ८६४
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