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||ॐ अहं नमः ।। ।।श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः।। ।। प्रातः स्मरणीय प्रभुश्रीमद्विजय राजेन्द्रगुरुभ्यो नमः।।
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| अध्याय 1
गुणस्थान शब्द का पारिभाषिक अर्थ और उसके पर्यायवाची शब्द
गुणस्थान शब्द की प्राचीनतम परिभाषा दिगम्बर प्राकृत पंचसंग्रह में उपलब्ध होती है । उसमें कहा गया है कि मोहनीय आदि कर्मों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि से जीव जिन विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त होता है, उन अवस्थाओं को सर्वज्ञ, सर्वदर्शियों ने गुणस्थान संज्ञा से निर्दिष्ट किया है।' इस प्रकार पंचसंग्रह के अनुसार गुणस्थान शब्द कर्मों के उदय आदि के कारण जीवों की विभिन्न अवस्थाओं को सूचित करता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में प्राचीन आचार्यों के ग्रन्थों के आधार पर आचार्य राजेन्द्रसूरिजी गुणस्थान शब्द को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि जीवों के ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप विभिन्न भाव गुण कहे जाते हैं। ये गुण जिन-जिन अवस्थाओं में, जिस-जिस रूप में रहते हैं, उन्हें गुणस्थान कहते हैं। प्रवचनसारोद्धार की टीका के अनुसार गुणों के प्रकर्ष या अपकर्ष रूप आत्मा की जो शुद्धि या अशुद्धि की अवस्था होती है, वह गुणस्थान कही जाती है। चतुर्थ कर्मग्रन्थ की टीका में गुणस्थान को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि परमपद रूप प्रसाद के शिखर पर आरोहण करने के जो सोपान हैं, वे गुणस्थान हैं। ___अन्यत्र यह भी कहा गया है कि मिथ्यादृष्टि आदि से प्रारम्भ करके अयोगीकेवली अवस्था तक जीवों के जो विभिन्न भेद हैं, उन्हें गुणस्थान कहा जाता है। समवायांगसूत्र में कर्मविशुद्धि की अवस्थाओं को ही जीवस्थान (गुणस्थान) कहा गया है। अमितगतिकृत दिगम्बर संस्कृत पंचसंग्रह में गुणस्थानों को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि औदयिक आदि भावों के आधार पर गुण, अवगुण रूप से जीवों की जिन विभिन्न अवस्थाओं का बोध होता है, वे गुणस्थान कही जाती हैं। गोम्मटसार में कहा
१ जेहि दु लक्खिजंते उदयादिसु सम्भवेहिं भावेहिं।
जीवा ते गुणसण्णा णिदिट्ठा सव्वदरिसीहिं ।। - दिगम्बर प्राकृत पंचसंग्रह, प्रथम अधिकार, गा. क्र. -३, लेखक आ. अमितगति, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। २ अभिधान राजेन्द्र कोष भाग-३, लेखक राजेन्द्रसूरिजी, अभिधान राजेन्द्र कोष प्रकाशन संस्था, अहमदाबाद । ३ प्रवचन सारोद्धार, सटीकं २२४ वाँ द्वार, गाथा क्रमांक -१३०२ की टीका, पृ. ४६४ प्रका. भारतीय प्राच्यतत्व प्रकाशन समिति, पिंडवाडा ४ सटीकाश्चत्वारः - प्राचीन कर्मग्रन्थाः । ५ अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग-३, पृ. ६१३ ६ समवायांगसूत्र, समवाय -१४
सूत्र : कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउदस जीवट्ठाणा- वाचनाप्रमुखः आ. तुलसी प्रकाशन : जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.) ७ दिगम्बर संस्कृत पंचसंग्रह, गाथा क्रमांक -१२, लेखक अमितगतिसूरि, श्री माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, हीराबाग, पो. गिरगाँव-मुंबई
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