SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा..... पंचम अध्याय........{335} (४) सांशयिक मिथ्यात्व और (५) अनाभोग मिथ्यात्व । इसी प्रकार अविरति के निम्न बारह उत्तर बन्धहेतु माने गए है - (१) मन (२) स्पर्शेन्द्रिय (३) रसनेन्द्रिय (४) घ्राणेन्द्रिय (५) चक्षुरिन्द्रिय (६) श्रोत्रेन्द्रिय (७) पृथ्वीकाय (८) अप्काय (६) तेजस्काय (१०) वायुकाय (११) वनस्पतिकाय (१२) त्रसकाय । कषाय के निम्न पच्चीस उत्तर बन्धहेतु बताए गए हैं - (१ से ४) अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क (५ से ८) अप्रत्याख्यानीय कषाय चतुष्क (६ से १२) प्रत्याख्यानीय कषाय चतुष्क (१३ से १६) संज्वलन कषाय चतुष्क (१७) हास्य (१८) रति (१६) अरति (२०) शोक (२१) भय (२२) जुगुप्सा (२३) पुरुषवेद (२४) स्त्रीवेद और (२५) नपुंसकवेद । इसी प्रकार योग के निम्न पन्द्रह उत्तर बन्ध हेतु होते है - (१) सत्य मनोयोग (२) असत्य मनोयोग (३) सत्यासत्य मनोयोग (४) असत्यामृषा मनोयोग (५) सत्य वचनयोग (६) असत्य वचनयोग (७) सत्यासत्य वचनयोग (८) असत्यामृषा वचनयोग (E) औदारिक काययोग (१०) औदारिकमिश्र काययोग (११) वैक्रिय काययोग (१२) वैक्रियमिश्र काययोग (१३) आहारक काययोग (१४) आहारकमिश्र काययोग और (१५) कार्मण काययोग । इस प्रकार उत्तर बन्धहेतुओं की संख्या ५७ होती है । इन ५७ बन्धहेतुओं में मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सयोगीकेवली गुणस्थान तक किस गुणस्थान में कितने उत्तर बन्धहेतु होते हैं, इसकी विस्तृत चर्चा षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ एवं पंचसंग्रह के चतुर्थ द्वार की चार से चौदह तक की गाथा में की गई है । यहाँ हम विस्तार भय से बचने के लिए इसकी विस्तृत चर्चा न करते हुए, मात्र उसकी तालिका प्रस्तुत करते हैं । इस तालिका से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस गुणस्थान में मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग सम्बन्धी कितने उत्तर बन्धहेतु होते हैं। सभी जीव आश्रयी उत्तर बन्धहेतु गुणस्थान मिथ्यात्व अविरति कषाय योग विशेषता | मिथ्यात्व १३ ५५ ॐ १२ २५ । १३ २सास्वादन ३ | मिश्र आहारकद्विक बिना पाँच मिथ्यात्व बिना अनन्तानुबन्धी चतुष्क मिश्रद्विक, कार्मण बिना १२ । २१ ४६ ४ | अविरतसम्यग्दृष्टि ५ | देशविरति १२ ११ । १३ | ११ १७ प्रमत्तसंयत १३ । १३ २६ ००० ०००० । ७ |अप्रमत्तसंयत २४ मिश्रद्विक, कार्मण सहित त्रस की अविरति, अप्रत्याख्यानीया औदारिकमिश्र, और कार्मण बिना ग्यारह अविरति, प्रत्या- ख्यानीय बिना आहारक सहित दो मिश्र बिना आहारक और वैक्रिय बिना हास्यषट्क बिना तीन वेद और संज्वलन त्रिक बिना लोभ बिना ८ अपूर्वकरण ६ | अनिवृत्तिबादर |१०| सूक्ष्मसंपराय ०० ००० ० ० ० 16] ० | |११| उपशान्तमोह १२ क्षीणमोह १३ सयोगीकेवली ००० ० लोभ बिना पूर्वोक्त सात ० Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy