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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा... पंचम अध्याय.....{334} षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ में गुणस्थान सम्बन्धी उल्लेख : षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ में जीवस्थान, मार्गणास्थान, गुणस्थान, उपयोग, योग, लेश्या, बन्ध, अल्प-बहुत्व, पंचभाव और संख्यात आदि की चर्चा की गई है । जहाँ तक गुणस्थान सम्बन्धी चर्चा का प्रश्न है, इसमें सर्वप्रथम चौदह जीवस्थानों में गुणस्थान, उसके पश्चात् गाथा क्रमांक १६ से २५ तक बासठ मार्गणास्थानों में चौदह गुणस्थानों का अवतरण किया गया है । इसके पश्चात् क्रमशः चौदह गुणस्थानों में योग, उपयोग, लेश्या, मूल बन्धहेतु, उत्तर बन्धहेतु तथा अष्ट मूल प्रकृतियों के बन्ध, उदय और उदीरणा की चर्चा है । यह समस्त चर्चा पंचसंग्रह के प्रथम खण्ड के गुणस्थान सम्बन्धी विवेचन में भी मिलती है । षडशीति नामक इस चतुर्थ कर्मग्रन्थ में जो विशेष उल्लेख हमें मिलता है, वह गुणस्थानों के अल्प बहुत्व को लेकर है । प्रथम तालिका में हमने यह बताया है कि किस गुणस्थान में कितने जीवस्थान, कितने योग, कितने उपयोग, कितनी लेश्या, कितने बन्धहेतु, कितनी कर्मप्रकृतियों के बन्ध, कितनी कर्मप्रकृतियों का उदय, कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा और कितनी कर्मप्रकृतियों की सत्ता होती है । इसके पश्चात् विभिन्न गुणस्थानों में उत्तरबन्धहेतुओं के विकल्पों के सम्बन्ध में तालिकाएँ प्रस्तुत की गई तथा अन्त में विभिन्न गुणस्थानों में जीवों के अल्प-बहुत्व को लेकर चर्चा की है । इस संबंध में सभी तालिकाएं पंडित धीरजलाल डाहयाभाई मेहता द्वारा गुजराती में अनुदित एवं व्याख्यायित षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ से ली क्रमांक गुणस्थान का नाम जीवस्थान योग उपयोग लेश्या बन्धहेतु बन्ध उदय उदीरणा सत्ता मिथ्यात्व | १४| १३| ५ | ६ |८ ८ । | ७८ | ७/८ | सास्वादन com. मिश्र १० ६ ७ ७/८ ७/८ | ५५ ७/८ ५० |७/८ ४३ | ४६ ७/८ ३६ |७/८ २६ | ७/८ | २४ ७/८ । २२ | ७ | १६ | १० |E |१ |८ |८ ८ | ७/८ ६ अविरतसम्यग्दृष्टि | २ | | देशविरति ५ | प्रमत्तसंयत | अप्रमत्तसंयत १ | ७ | अपूर्वकरण | १ | ८ अनिवृत्तिकरण | १ | ६ | सूक्ष्मसंपराय | उपशान्तमोह १ | ११ | क्षीणमोह १२ सयोगीकेवली १३ | अयोगीकेवली ११| ६ | ६ ७ ७ | ३ १ १ VVVVV991 | । ६/५ | oc|6MIMIMIMIMI ६ | ७ | १ . २ | १ | ७ १ ४ ४० ० षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रन्थ की गाथा क्रमांक ५४ से ५८ में किस गुणस्थान में कितने उत्तर बन्धहेतु होते हैं, इसकी सामान्य चर्चा के पश्चात् पांचों बन्धहेतुओं के भेदो का उल्लेख करते हुए, किस गुणस्थान में कितने उत्तर बन्धहेतु होंगे, इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा की गई है । सर्वप्रथम हमें यह जान लेना होगा कि मूल पाँच बन्धहेतु कौन-से होते हैं । इस विवेचन में मिथ्यात्व के निम्न पाँच बन्धहेतु माने गए हैं - (१) अभिगृहीत मिथ्यात्व (२) अनभिगृहीत मिथ्यात्व (३) आभिनिवेशिक मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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