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________________ पंचम अध्याय........{331} प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... उदीरणा विच्छेद यंत्र क्रमांक गुणस्थान ज्ञानावरणीय वेदनीय मोहनीय आयुष्य नाम गोत्र अन्तराय योग | | ० ।। ० ० ११ ० ० २२ १२ ० ० १८ मिथ्यात्व | ० ० ० २ ० | ३ | २ | सास्वादन ३ मिश्र | ४ | अविरतसम्यग्दृष्टि | | | ६ | | देशविरत | | | | १० | २ | २३ प्रमत्तसंयत अप्रमत्तसंयत | ० | ३ | २ | १४ । ४ । २५ अपूर्वकरण ० | ३ | २ | १५ ।। २८ अनिवृत्तिकरण २८ ० ० ०||||||||०००००० | दर्शनावरणीय २४. ० ० ४१ | ० ४६ | ० ५६ ० सूक्ष्मसंपराय २ | २७ २८ ० २ | २८ ० ० ७० ११] उपशान्तमोह | क्षीणमोह १३] सयोगीकेवली | १४| अयोगीकेवली | ० | ५ | २ | २८ | ४ | ५ | ६ | २ | २८ । ४ ० ० ० ० ० | २८ | ३० । २६ ० ०००० । ८३ ० ० ० ० बन्धस्वामित्व नामक तृतीय कर्मग्रन्थ और गुणस्थान सिद्धान्त बन्धस्वामित्व नामक तृतीय कर्मग्रन्थ में गति आदि चौदह मूल मार्गणाओं और उसके उत्तरभेद रूप बाँसठ मार्गणाओं में रहने वाले जीव किस गुणस्थान में रहते हुए, कौन-से कर्म की कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते है; इस बात का विवेचन है । मार्गणाओं में बन्ध को समझने के लिए प्रकृतियों का क्रम निम्नानुसार समझना चाहिए। (१) जिननाम (२) देवगति (३) देवानुपूर्वी (४) वैक्रिय शरीर (५) वैक्रिय अंगोपांग (६) आहारक शरीर (७) आहारक अंगोपांग (८) देवायुष्य (E) नरकगति (१०) नरकानुपूर्वी (११) नरकायुष्य (१२) सूक्ष्म (१३) अपर्याप्त (१४) साधारण (१५) द्वीन्द्रिय (१६) त्रीन्द्रिय (१७) चतुरिन्द्रिय (१८) एकेन्द्रिय (१६) स्थावर (२०) आतप (२१) नपुंसक वेद (२२) मिथ्यात्व (२३) हुंडक (२४) सेवार्त (२५-२६-२७-२८) अनन्तानुबन्धी चतुष्क (२६-३०-३१-३२) मध्यम के चार संस्थान (३३-३४-३५-३६) मध्यम के चार संघयण (३७) अशुभ विहायोगति (३८) नीचगोत्र (३६) स्त्रीवेद (४०-४१-४२) दौर्भाग्य-दुस्वर-अनादेय (४३-४४-४५) स्त्यानगृद्धि त्रिक (४६) उद्योत (४७) तिर्यंच गति (४८) तिर्यंचानुपूर्वी (४६) तिर्यंचायुष्य (५०) मनुष्यायुष्य (५१) मनुष्यगति (५२) मनुष्यानुपूर्वी (५३) औदारिक शरीर (५४) औदारिक अंगोपांग और (५५) वज्रऋषभनाराच संघयण । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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