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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... पंचम अध्याय........{324} कुछ मतान्तरों को छोड़कर यह विवरण पूज्यपाद देवनन्दी की सवार्थसिद्धि टीका, चन्द्रर्षिमहत्तराचार्य के पंचसंग्रह के प्रथम खंड में भी मिलती है । अतः यहाँ हम इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा में न जाकर संकेत रूप से किस गुणस्थान में किन कर्मप्रकृतियों का बन्ध, उदय, उदीरणा एवं सत्ता होती है, इसकी तालिकाएँ प्रस्तुत करेंगे। इनमें बन्ध, उदय और उदीरणा सम्बन्धी तालिकाएँ कर्मस्तव (द्वितीय कर्मग्रन्थ) गुजराती अनुवादक एवं व्याख्याकार पं. धीरजलाल डाह्यालाल मेहता से उद्धृत की गई है । इसीप्रकार बन्ध विच्छेद, उदय विच्छेद, उदीरणा विच्छेद, सत्ता और सत्ताक्षय सम्बन्धी तालिकाएँ डॉ. सागरमल जैन की पुस्तक गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण से उद्धृत की गई है। बन्ध यन्त्र नहीं क्रमांक गुणस्थान बन्धने वाली उत्तर प्रकृति अं. बन्धने वाली | ज्ञा. | द. | J. | मो. | आ. | ना. | गो. | उत्तर प्रकृति ہد ہد ہد •rm » Hu9 मिथ्यात्व सास्वादन मिश्र अविरत सम्यग्दृष्टि देशविरति प्रमत्तसंयत | अप्रमत्तसंयत ہد ہد ہد -/७ | ५/५६ | ६२/६१ है ا ہد Wwururururum-000 ہد ہد ہد अपूर्वकरण गुणस्थान प्रथम भाग द्वितीय भाग तृतीय भाग चतुर्थ भाग पंचम भाग षष्ठम भाग सप्तम भाग ० ० ० ० ० ० ० ہد ہد ہد ہد | ا oc ہو or अनिवृत्तिकरण गुणस्थान ہد प्रथम भाग | द्वितीय भाग तृतीय भाग चतुर्थ भाग पंचम भाग ० ० ० « ہد umr - « ہد ० ० ا ہد | १०३ ० ० ० ہو ० ० ه १० सूक्ष्मसंपराय ११/ उपशान्तमोह क्षीणमोह | सयोगीकेवली १४ | अयोगीकेवली ० ० ه ११E ११E ११६ १२० ० ० ० ० ० ० ه ० ० ه Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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