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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........ पंचम अध्याय.....{276} सके। गुणश्रेणी शब्द वस्तुतः कर्म- निर्जरा की एक प्रक्रिया या पद्धति का ही सूचक बनता है । गुणश्रेणी का तात्पर्य है कि कर्मदलिकों को इस प्रकार से नियोजित करना कि प्रति समय उनकी अधिक से अधिक निर्जरा हो सके। इससे यह सिद्ध होता है कि गुणश्रेणी कर्म - निर्जरा की एक प्रक्रिया या पद्धति है । 'गुण' यानी प्रति समय असंख्यगुणा- असंख्यगुणा कर्मप्रदेशों को सत्ता से निकालकर प्रति समय असंख्यगुणा- असंख्यगुणा कर्मप्रदेशों का उदयावलि में स्थापित करना और प्रति समय असंख्यगुणा - असंख्यगुणा कर्मप्रदेशों को उदय में लाकर निर्जरित करने की 'श्रेणी' अर्थात् क्रमिक पद्धति गुणश्रेणी कहलाती है। इसी प्रकार सम्यक्त्वादि विशिष्ट आत्मगुणों की प्राप्ति के समय कर्मप्रदेशों को अधिक मात्रा में उदय में लाकर निर्जरित करने की प्रक्रिया ही गुणश्रेणी है। गुण शब्द का एक अर्थ बद्ध कर्म भी होता है, क्योंकि गुण रस्सी को कहते हैं और रस्सी बांधने का कार्य करती है, अतः जो आत्मा को बन्धन में डाले वह गुण है । डॉ. सागरमल जैन का मानना है कि आचारांग में गुण शब्द का प्रयोग ऐन्द्रिक विषय, आश्रव द्वार, संसार परिभ्रमण के कारणभूत आदि अर्थों में हुआ है, अतः गुण को बद्ध कर्म मानें, तो उनके क्षय के लिए की गई प्रक्रिया विशेष को गुणश्रेणी कहा जा सकता है । सम्यक्त्वादि विशिष्ट गुणों की प्राप्ति के लिए तथा उन्हें प्राप्त होने के बाद अध्यवसायों की बढ़ती विशुद्धि के द्वारा क्रमशः अग्रिम अग्रिम गुणों की शीघ्र प्राप्ति के लिए गुणश्रेणी में कर्मदलिकों को एक ऐसे क्रम में योजित किया जाता है कि अग्रिम अग्रिम समयों में उनका अनेक गुण निर्जरण या क्षय अथवा उपशम होता रहे, यह पद्धति गुणश्रेणी कही जाती है । कर्मप्रदेशों का उदयकाल प्रारम्भ होने के बाद के समयों में असंख्य - असंख्यगुणा कर्मप्रदेशों की दलरचना करके उनको उदयावलि में लाकर क्षय करना ही गुणश्रेणी है । पंचसंग्रह के पंचम द्वार की एक सौ सातवीं और एक सौ आठवीं गाथा में ये गुणश्रेणियाँ कौन-कौन से गुणों की प्राप्ति के समय होती है, इसका विवेचन किया गया है। ये गुणश्रेणियाँ ग्यारह हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से निर्देशित किया गया है - (१) सम्यक्त्व निमित्त से होनेवाली प्रथम गुणश्रेणी (२) देशविरति के निमित्त से होनेवाली द्वितीय गुणश्रेणी (३) सर्वविरति के निमित्त से होने वाली तृतीय गुणश्रेणी (४) अप्रमत्त गुणस्थान में अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना करते अपूर्व- अनिवृत्तिकरण में होनेवाली चतुर्थ गुणश्रेणी । (५) सातवें गुणस्थान में सम्यक्त्वमोह, मिश्रमोह और मिथ्यात्वमोह- ये तीन दर्शन मोहनीय का क्षय करने से अपूर्व अनिवृत्तिकरण में होनेवाली पंचम गुणश्रेणी (६) चारित्र उपशमन से होनेवाली षष्ठ गुणश्रेणी (७) उपशान्तमोह गुणस्थान में होनेवाली सप्तम गुणश्रेणी (८) चारित्र मोहनीय का क्षय करने से जो गुणश्रेणी होती है, वह अष्टम गुणश्रेणी (६) क्षीणमोह गुणस्थान में होनेवाली नवम गुणश्रेणी (१०) सयोगीकेवली गुणस्थान में होनेवाली दशम गुणश्रेणी (११) अयोगीकेवली गुणस्थान में होनेवाली एकादश गुणश्रेणी । से (१) सम्यक्त्व गुणश्रेणी : सम्यक्त्व प्राप्त होने से पहले जो यथाप्रवृत्तादि तीन करण होते हैं, उसमें दूसरे अपूर्वकरण के प्रथम समय आयुष्य रहित सात कर्मों की गुणश्रेणी प्रारम्भ होती है। वे सम्यक्त्व प्राप्त होने से पहले प्रारम्भ होकर तथा सम्यक्त्व प्राप्त होने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त के बाद समाप्त होती है। इस गुणश्रेणी का समाप्ति स्थान अनियत है । (२) देशविरति गुणश्रेणी : देशविरति के सन्मुख हुआ अविरतसम्यग्दृष्टि जीव स्वयं के चौथे गुणस्थान में देशविरति की प्राप्ति के लिए यथाप्रवृत्तिकरण और अपूर्वकरण को (अनिवृत्तिकरण) नहीं करता है, वहाँ यह गुणश्रेणी होती है, परन्तु अपूर्वकरण के अन्त में जब देशविरति प्राप्त करता है तब प्रथम समय से लेकर एक अन्तर्मुहूर्त तक यह गुणश्रेणी जारी रहती है, क्योंकि देशविरति (तथा सर्वविरति) की प्राप्ति के समय अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव अवश्य वृद्धि को प्राप्त विशुद्धिवाला होता है। उसके पश्चात् वर्धमान, हीयमान अथवा अवस्थित परिणाम वाला भी हो सकता है, इसीलिए उस काल के पश्चात् परिणाम के अनुसार भी वर्धमान, हीयमान अथवा अवस्थित गुणश्रेणी होती है, जिससे देशविरति जितने समय तक रहती है, उतने समय तक गुणश्रेणी भी अनियत रूप से जारी रहती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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