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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा........ चतुर्थ अध्याय ........{219} वेदमार्गणा में पुरुषवेदवाले मिथ्यादृष्टि में अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार के अनुरूप ही होता है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जो बताया गया है, उसके अनुरूप है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त है, उत्कृष्टअन्तर सौ " सागरोपम पृथक्त्व है । दोनों उपशमकों में सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में जो सामान्य रूप से कथित है, उसके समरूप है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागरोपम पृथक्त्व है । दोनों क्षपकों का सभी जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय का और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक १२ एक वर्ष है। एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । वेदमार्गणा में नंपुसकवेदवालों में मिथ्यादृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेंतीस सागरोपम है । सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर अनिवृत्तिबादर उपशमक तक प्रत्येक गुणस्थान का अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में जो सामान्य रूप से कथित है, उसके समरूप है तथा दोनों क्षपकों का अन्तर स्त्रीवेदवाले के समान है । अपगतवेदवालों में अनिवृत्तिबादर उपशमक और सूक्ष्मसंपराय उपशमक के सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जो निर्दिष्ट है, उसी के समरूप ही समझना चाहिए। एक जीव की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। उपशान्तकषाय का सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अन्तर - अनुयोगद्वार में जैसा सामान्य रूप से कहा है, वैसा ही मानना चाहिए। एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । शेष गुणस्थानों का अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में जैसा कथित है, उसी के समरूप है । कषायमार्गणा की अपेक्षा क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय सहित मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिबादर उपशमक तक प्रत्येक गुणस्थान का अन्तर मनोयोगी के समान है । दोनों क्षपकों में सभी जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। लोभकषाय युक्त सूक्ष्मसंपरायवाले सभी जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जो कथन किया गया है, उसी के समरूप होता है। एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । सूक्ष्म लोभवाले क्षपक का अन्तरकाल, अन्तर - अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा कहा गया है, वैसा ही जानना चाहिए । कषायरहित जीवों में उपशान्तकषायवाले सभी जीवों की अपेक्षा जो अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से बताया गया है, वही अन्तर जानना चाहिए । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । शेष गुणस्थानवाले जीवों में अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार के समान ही जानना चाहिए । अन्तर- अनुयोगद्वार में ज्ञानमार्गणा की अपेक्षा से मति - अज्ञानी, श्रुत- अज्ञानी और विभंगज्ञानी में मिथ्यादृष्टि सभी जीवों और एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । सासादनसम्यग्दृष्टि सभी जीवों का अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में जैसा बताया गया है, वैसा ही समझना चाहिए। एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं है । आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टि सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्व कोटि वर्ष ३१३ है । संयतासंयत सभी जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक४ छासठ सागरोपम है। चारों क्षपकों का अन्तरकाल, अन्तर- अनुयोगद्वार में सामान्य रूप से जैसा निर्देशित किया गया है, वैसा ही जानना चाहिए, किन्तु अवधिज्ञानी सभी जीवों की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट ३११ सासादन के दो समय कम और सम्यग्मिथ्यादृष्टि के छः अन्तर्मुहूर्त कम सौ सागरोपम पृथक्त्व यह अन्तर जानना चाहिए । ३१२ पुरुषवेदवाले में अधिक से अधिक साधिक एक वर्ष तक क्षपकश्रेणी पर नहीं चढ़ना, यह इसका भाव है। ३१३ चार अन्तर्मुहूर्त कम पूर्व कोटि । ३१४ आठ वर्ष और ग्यारह अन्तर्मुहूर्त कम तीन पूर्व कोटि अधिक छासठ सागरोपम, किन्तु अवधिज्ञानी के ग्यारह अन्तर्मुहूर्त के स्थान में १२ अन्तर्मुहूर्त कम करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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