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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
चतुर्थ अध्याय........{207} भागों में से कुछ कम आठ२४५ भाग का स्पर्श करते हैं। संयतासंयत गुणस्थानवी जीव लोक के असंख्यातवें भाग का और त्रसनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम छ:२४६ भाग का स्पर्श करते हैं तथा प्रमत्तसंयतों से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक के जीव लोक के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं।
विशेष की अपेक्षा गतिमार्गणा में नरकगति में पहली पृथ्वी में मिथ्यादृष्टि आदि चार गुणस्थानवाले नारक लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं। दूसरी से लेकर छठी पृथ्वी तक के मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि नारकी लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और क्रमशः लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम एक रज्जु, कुछ कम दो रज्जु, कुछ कम तीन रज्जु, कुछ कम चार रज्जु और कुछ कम पाँच रज्जु क्षेत्र का स्पर्श करते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकी जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं । सातवीं पृथ्वी में मिथ्यादृष्टि नारकी लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और त्रसनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम छः रज्जु क्षेत्र का स्पर्श करते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष तीन गुणस्थानवर्ती नारकी लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंच लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम सात४७ भाग स्पर्श करते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि तिर्यंच लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्यंच लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और त्रसनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम छ:२४८ भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं । मनुष्यगति में मिथ्यादृष्टि मनुष्य लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और सम्पूर्ण लोक२४६ का स्पर्श कर सकते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती मनुष्य लोक के असंख्यातवें भाग और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम सात५० भाग क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगी केवली गुणस्थान तक के मनुष्य लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं । देवगति में मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और त्रसनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ२५१ भाग और कुछ कम नौ भाग क्षेत्र स्पर्श करते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ२५२ भाग क्षेत्र का स्पर्श करते हैं ।
इन्द्रियमार्गणा में मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय जीव सम्पूर्ण लोक का स्पर्श कर रहे हुए हैं । विकलेन्द्रिय लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करके रहे हुए हैं । पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का और लोकनाड़ी के चौदह भागों में से कुछ कम आठ२५३ भाग क्षेत्र का और सम्पूर्ण२५४ लोक का स्पर्श कर सकते हैं । शेष गुणस्थानवाले
२४५ मेरुपर्वत के मूल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर छः रज्जु यह स्पर्श विहारवत्स्थान वेदना, कषाय और वैक्रियक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त
होता है। असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों के मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा भी यह स्पर्श बन जाता है। २४६ ऊपर अच्युत कल्प तक छः रज्जु । इसमें से चित्रा पृथ्वी का एक हजार योजन व आरण अच्युत कल्प के उपरिम विमानों के उपर का भाग छोड़ देना
चाहिए। यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता है । २४७ मेरुपर्वत के मूल से ऊपर सात रज्जु । यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा है । यद्यपि तिर्यंच सासादन सम्यग्दृष्टि जीव
मेरुपर्वत के मूल से नीचे भवनवासियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हुए पाए जाते हैं, तथापि इतने मात्र से स्पर्श क्षेत्र रज्जु से अधिक न होकर
कम ही रहता है। २४८ ऊपर अच्युत कल्प तक छः रज्जु । इसमें से चित्रा पृथ्वी का एक हजार योजन व आरण अच्युत कल्प के उपरिम विमानों के उपर का भाग छोड़
देना चाहिए। यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा है। २४६ मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पद की अपेक्षा यह स्पर्श सर्वलोक परिमाण कहा है। २५० भवनवासी लोक के ऊपर लोकाग्र तक इसमें से अगम्य प्रदेश छूट जाने से कुछ कम सात रज्जु स्पर्श रह जाता है। यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात
की अपेक्षा प्राप्त होता है । २५१ मेरुपर्वत तल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर छः रज्जु । यह स्पर्श क्षेत्र विहार, स्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियक पद की अपेक्षा प्राप्त होता
२५२ मेरुतल से नीचे कुछ कम दो रज्जु और ऊपर सात रज्जु । यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा प्राप्त होता है। २५३ विकलेन्द्रिय का मारणान्तिक समुद्घात और उपपादपद की अपेक्षा यह स्पर्श सर्वलोक परिमाण कहा है। २५४ सम्पूर्ण लोक स्पर्श मारणान्तिक और उपपाद की अपेक्षा प्राप्त होता है ।
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