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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{147} जानना चाहिए । शुक्ललेश्यावालों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव सबसे कम हैं। उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। भव्यमार्गणा में भव्यसिद्धिकों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक की अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा सामान्य से जैसी बताई गई है, उसी के समान है। अभव्यसिद्धिकों में अल्प-बहुत्व नहीं है। सम्यक्त्वमार्गणा में सम्यग्दृष्टि जीवों में अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा अवधिज्ञानियों के समान हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से क्षीणकषाय वीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में सयोगीकेवली और अयोगीकेवली गुणस्थान प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और इनका परिमाण पूर्वोक्त ही है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीव संचयकाल की अपेक्षा इनसे संख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टि में सयोगीकेवली गुणस्थानवी जीवों से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवर्ती संख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत-इन गुणस्थानों में क्षायिकसम्यक्त्व का भेद नहीं हैं, अतः इन गुणस्थानों में सम्यक्त्व का भी अल्प-बहुत्व नहीं है । वेदकसम्यग्दृष्टियों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव सबसे कम हैं । वेदकसम्यग्दृष्टियों में अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवर्ती असंख्यातगुणित हैं। वेदकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से असंख्यातगुणित हैं। वेदकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में चूंकि वेदकसम्यक्त्व का भेद नहीं है, अतः इन गुणस्थानों में सम्यक्त्व के अल्प-बहुत्व की संभावना नहीं है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों के अल्प-बहुत्व का परिमाण पूर्वोक्त ही है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवर्ती जीवों से अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियों में अनुपशामक अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीव संख्यातगुणित हैं, प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी जीवों से संयतासंयत गुणस्थानवर्ती जीव असंख्यातगुणित हैं । उपशमसम्यग्दृष्टियों में संयतासंयत गुणस्थानवी जीवों से असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानों में उपशमसम्यक्त्व का अल्प-बहुत्व नहीं है, अतः वहाँ सम्यक्त्व का अल्प-बहुत्व सम्भव नहीं है । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान जीवों में सम्यक्त्व का अभाव है, अतः उसका अल्प-बहुत्व नहीं है। संज्ञीमार्गणा में संज्ञियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक के प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवों के अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा सामान्य से बताए गए के समान है। विशेष यह है कि संज्ञियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती जीवों से मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव असंख्यातगुणित हैं। असंज्ञी जीवों में अल्प-बहुत्व नहीं है, क्योंकि वे सभी मिथ्यादृष्टि ही हैं। ____ आहारमार्गणा में आहारकों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेश की अपेक्षा तुल्य और संख्या में अल्प हैं। आहारकों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों का अल्प-बहुत्व पूर्वोक्त अनुसार ही है । आहारकों में उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवी जीवों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं। क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थानवर्ती Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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