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________________ प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा...... तृतीय अध्याय........{120}-. उपर्युक्त देवों में इस गुणस्थान का जघन्य काल साधिक इकतीस सागरोपम और चारों अनुत्तर विमानों में साधिक बत्तीस सागरोपम है। नौ अनुदिश विमानों में अनुदिशविमानवासी देवों में इस अविरतसम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट काल बत्तीस सागरोपम तथा चारों अनुत्तरविमानवासी देवों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल तेंतीस सागरोपम है। सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों में असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती देव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों में एक जीव की अपेक्षा अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान का जघन्य और उत्कृष्ट काल तेंतीस सागरोपम है। इन्द्रिय मार्गणा में एकेन्द्रिय सभी जीवों की अपेक्षा, मिथ्यादृष्टि जीव सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा एकेन्द्रिय जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गलपरावर्त रूप अनन्त काल है । बादर एकेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं । एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण है । एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय जीवों का उत्कृष्ट काल अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी परिमाण है । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सभी जीवों की अपेक्षा सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्महर्त है । एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है । बादर एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण है । एक जीव की अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालो में होते हैं । एक जीव की अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक परिमाण है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालो में होते हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय पर्याप्त, त्रीन्द्रिय पर्याप्त और चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त परिमाण है। एक जीव की अपेक्षा इन विकलेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त परिमाण और उत्कृष्ट काल क्रम से पूर्वकोटि पृथक्त्व से अधिक हजार सागरोपम और सागरोपमशतपृथक्त्व परिमाण है । सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगीकेवली गुणस्थान तक के पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में उन गुणस्थानों का काल सामान्य से जैसा कथित है, वैसा ही जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों में इन गुणस्थानों का काल द्वीन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों के काल के अनुसार जानना चाहिए। कायमार्गणा में पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजस्काय और वायुकाय के जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, तीनों कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा इन जीवों में मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक परिमाण है। बादर पृथ्वीकाय, बादरजलकाय, बादरतेजस्काय, बादरवायुकाय और बादर वनस्पतिकाय प्रत्येक शरीरी जीव, सभी जीवों की अपेक्षा, सभी कालों में होते हैं। एक जीव की अपेक्षा इन जीवों के मिथ्यात्व गुणस्थान का जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण परिमाण और उत्कृष्ट काल कर्म स्थिति अर्थात् दर्शनमोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तरकोडाकोडी सागरोपम परिमाण है । बादर Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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