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________________ समत्वयोग का तुलनात्मक अध्ययन ३२१ है। इसमें कहा गया है कि जिसे सांसारिक भोग अच्छे नहीं लगते, वही पुरुष जीवन्मुक्त कहलाता है। जो प्रतिपल होने वाले सुख या दुःख अथवा अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में न तो आसक्त बनता है, न ही विचलित होता है और न हर्षित, न दुःखी होता है, वही जीवन्मुक्त अर्थात् समत्वयोगी कहलाता है। जो हर्ष, अमर्ष, भय, काम, क्रोध एवं शोक आदि विकारों से मुक्त रहता है, वही समत्व से युक्त होता है। जो अहंकार युक्त वासना को सहजता से त्याग देता है और जो ज्ञेय तत्व का ज्ञाता है; वही जीवन्मुक्त या समत्वयोगी है। जिसकी आत्मा सदैव परमात्मा में लीन है, मन पूर्ण एवं पवित्र है, जिसको किसी पदार्थ के प्रति न तो आसक्ति है और न उदासीन भाव है, वह समत्वयोगी है। जो पुरुष राग-द्वेष, सुख-दुःख, मान-अपमान, धर्म-अधर्म एवं फलाफल की इच्छा-आकांक्षा नहीं रखता है, और सदैव अपने कर्त्तव्यों के परिपालन में व्यस्त रहता है, वही मनुष्य जीवनन्मुक्त कहलाता है। जो मोह रहित होकर साक्षीभाव से जीवन यापन करता है तथा बिना किसी फल की कामना किये ही अपने कर्त्तव्य कर्म में रत रहता है, वही जीवन्मुक्त या समत्वयोगी है। जिसने सांसारिक -महोपनिषद् अध्याय २ । - वही । -वही । 'तपः प्रभृतिना यस्मै हेतुनैव विना पुनः । भोगा इह न रोचन्यते स जीवन्मुक्त उच्यते ।। ४२ ।।' 'आपतत्सु यथाकालं सुखदुःखेष्वनारतः । न हृष्यति ग्लायति यः स जीवन्मुक्त उच्चते ।। ४३ ।।' 'हर्षामर्षभयक्रोधकामकार्पण्यद्दष्टिभिः ।। न परामृश्यते योऽन्त स जीवन्मुक्त उच्चते ।। ४४ ।।' 'अहंकारमयी त्यक्त्वा वासनां लीलयैव यः । तिष्ठति ध्येयसंत्यागी स जीवन्मुक्त उच्चते ।। ४५ ।।' 'अध्यात्मरतिरासीनः पूर्णः पावनमानसः । प्राप्तानुत्तमविश्रान्तिन किंचिदिह वाञ्छति । यो जीवति गतस्नेहः स जीवन्मुक्त उच्यते ।। ४७ ।।' 'रागद्वेषौ सुखं दुःखं धर्माधर्मो फलाफले । यः करोत्यनपेक्ष्यैव स जीवन्मुक्त उच्चते ।। ४६ ।।' __ 'सर्वत्र विगतस्नेहो यः साक्षिवदवस्थितः । निरिच्छो वर्तते कार्ये स जीवनन्मुक्त उच्चते ।। ५१ ।।' -महोपनिषद् अध्याय २ । - वही । -वही । -वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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