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जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना
का विस्तार से उल्लेख किया है।९० इस प्रकार साधक का लक्ष्य ध्यान में चित्त को एकाग्र बनाकर तथा समत्व की साधना को सफल बनाकर मोक्ष मंजिल को उपलब्ध करना है।
।। चतुर्थ अध्याय समाप्त ।।
• श्रावकाचार (अमितगति) परिच्छेद १५ ।
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