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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना ३१३ क्रोधादि कषायों से उत्पन्न होने वाले ईर्ष्या, विषाद आदि मानसिक दुःखों से पीड़ित नहीं होता है। ध्यान मानसिक तनावों से मुक्ति का अन्यतम साधन है। ___ वस्तुतः ध्यान-साधना वह कला है, जो न केवल चित्त की निरर्थक भाग-दौड़ को नियन्त्रित करती है, अपितु वाचिक और कायिक गतिविधियों को भी नियंत्रित कर व्यक्ति को अपने आप से जोड देती है। तब हमें ऐसा महसूस होता है कि हमारा अस्तित्त्व चैतसिक और दैहिक गतिविधियों से भी ऊपर है और हम उनके केवल साक्षी ही नहीं अपितु नियामक भी हैं। ध्यान वह विधि है जिसके द्वारा हम आत्मसाक्षात्कार करते हैं। ध्यान जीवन में हमें जिन का या आत्मा में परमात्मा का दर्शन कराता है। __सभी साधना पद्धतियों में ध्यान का सर्वोपरि महत्त्व रहा है। ध्यान हमारी चेतना की ही अवस्था है। ध्यान के बिना कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक साध्य तक नहीं पहुंच सकता है। जैन, बौद्ध, योग आदि सभी दर्शनों में ध्यान को महत्त्व दिया गया है। ध्यान से ही आत्म-अनात्म का विवेक या स्व-पर का भेदज्ञान होता है। कर्ता-भोक्ता भाव के विकल्प क्षीण होने लगते हैं। एक निर्विकल्प आत्मदशा की अनुभूति होती है। दूसरे शब्दों में मन के संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाते हैं। चेतना की सभी विकलताएँ भी समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार आकांक्षाओं, वासनाओं, संकल्प-विकल्पों एवं तनावों से मुक्त होने पर एक निरपेक्ष आनन्द की उपलब्धि होती है। आत्मा अपने चिदानन्द स्वरूप में लीन रहती है। इस प्रकार ध्यान आत्मा को परमात्मा या शुद्धात्मा से जोड़ता है। अतः वह आत्म-साक्षात्कार या परमात्मा के दर्शन की एक कला है। ध्यान तभी सिद्ध होता है, जब हम शरीर से स्थिर बन कर, वाणी से मौन होकर और मन को एकाग्र बना कर, ममत्व बुद्धि का परित्याग कर, कायिक-वाचिक और मानसिक क्रियाओं पर पूर्ण नियन्त्रण करें। यही ध्यान मुक्ति या निर्वाण की प्राप्ति में सहायक होता है। जैन परम्परा में बारह तप के भेदों में से ध्यान आन्तरिक तप का एक प्रकार है। इसी तप को आत्मविशुद्धि का कारण माना गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि आत्मा तप से परिशुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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