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________________ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना की साधना करता है, तन्त्रों का प्रयोग करता है, सुदृढ़ गढ़ बनवाता है, चिकित्सकों की शरण में जाता है, चतुरंगी सेना तैयार करवाता है, पर जब काल आता है तो सम्पूर्ण किया कराया धराशायी हो जाता है । केवल आत्मा को ही यहाँ से प्रयाण करना पड़ता है। देह का वियोग ही मरण है । यहाँ कोई शरणभूत नहीं, सभी अशरण है । २७० हे भव्य प्राणी! सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं समत्वयोग ही अपना स्वरूप है। श्रद्धापूर्वक उसी की शरण ग्रहण करनी चाहिये, जिससे इस संसार समुद्र से आत्मा का उत्थान हो सके। 1 ज्ञानार्णव में शुभचन्द्र ने बताया है कि यह काल बड़ा बलवान है और क्रूरकर्मा अर्थात् दुष्ट है । जीवों को पाताल में, ब्रह्मलोक में, इन्द्र के भवन में, समुद्र के तटपर, वन के पार, दिशाओं के अन्त में, पर्वत के शिखर पर, अग्नि में, तलवारों के पहरे में, गढ़, कोट, भूमि, घर में तथा मदोन्मत्त हस्तियों के समूह से रक्षित इत्यादि किसी भी स्थान में यत्नपूर्वक बिठा दो; तो भी यह काल जीवों के जीवन को ग्रसीभूत कर लेता है । इस काल के आगे किसी का वश नहीं चलता ६६ इस प्रकार हमें देखना है कि अशरण भावना में भी संयोगों और पर्यायों की क्षणभंगुरता का बोध होता है । अनित्य भावना में भी हमने उनकी क्षणभंगुरता की चर्चा की। अशरण भावना में भी यही चिन्तन करना है कि अशरण स्वभाव के कारण किसी वस्तु को अपने परिणमन के लिये 'पर' की शरण में जाने की आवश्यकता नहीं है । 'पर' की शरण परतन्त्रता की सूचक है 1 प्रत्येक वस्तु पूर्णतः स्वतन्त्र है । अनाथी मुनि जब अपनी गृहस्थ अवस्था में रोग ग्रस्त हुए, तो उन्हें अशरण भावना के चिन्तन से वैराग्य हो गया । धर्म की शरण में जाने का संकल्प करते ही वे स्वस्थ हो गये । ६६ 'पाताले ब्रह्मलोके सुरपतिभवने सागरान्ते वनान्ते । दिक्चक्रे शैलशृंगे दहनवनहिमध्वान्तवज्रासिदुर्गे ॥ भूगर्भे सन्निविष्टं समदकरिघटासंकटे वा बलीयान् । कालोऽयं क्रूरकर्मा कवलयति बलाज्जीवितं देहभाजां ।। १८ ।। ' Jain Education International For Private & Personal Use Only - ज्ञानार्णव सर्ग २ | www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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