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________________ समत्वयोग की वैयक्तिक एवं सामाजिक साधना २५५ विषयों से निवृत्ति एक नैसर्गिक तथ्य है। किन्तु इसके साथ इच्छा और आकांक्षा को जोड़ना मानसिक असन्तुलन का कारण बनता है। वस्तुतः जब इन्द्रियों के साथ मन का योग है, तो सुखद अनुभूतियों की पुनः-पुनः प्राप्ति और दुःखद अनुभूतियों से बचने का संकल्प जन्म लेता है। भगवान महावीर ने उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि अनुकूल विषय राग के कारण होते हैं और प्रतिकूल विषय द्वेष के कारण होते हैं। इन्हीं राग-द्वेष के परिणामस्वरूप क्रोध, मान, माया और लोभ इन कषायों का जन्म होता है। जब अनुकूल की प्राप्ति में कोई बाधा उपस्थित होती है, तो उस बाधक तत्त्व या व्यक्ति के प्रति क्रोध का भाव जन्म लेता है।६ वांछित विषयों की प्रचुरता व्यक्ति में अहंकार को जन्म देती है और वह अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। इस प्रकार जब उसमें अहंकार का भाव जागृत हो जाता है, तब वह उस अहंकार की रक्षा के लिये दोहरी जीवन शैली को अपनाता है। उसकी करणी और कथनी में एक अन्तर आ जाता है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि जिसमें पूजा व प्रतिष्ठा की कामना होती है, वह माया या कपट वृत्ति का सहारा लेता है। दूसरी ओर इन्द्रियों को जो विषय अनुकूल लगते हैं, उनके संग्रह की भावना के रूप में लोभ का जन्म होता है।६० इस प्रकार राग-द्वेष और तद्जन्य क्रोध, मान, माया और लोभ की वृत्तियाँ व्यक्ति के मानसिक सन्तुलन को भंग कर देती है। साथ ही व्यक्ति की इच्छाएँ अपनी तृप्ति चाहती हैं। इच्छाओं की यह तृप्ति बाह्य साधनों पर निर्भर होती है। बाह्य साधन और बाह्य परिस्थिति सदैव ही इच्छाओं की पूर्ति के लिये अनुकूल ही हो, यह सम्भव नहीं होता है। बाह्य परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने पर अतृप्त इच्छा व्यक्ति के मन में एक क्षोभ या तनाव उत्पन्न करती है और इस प्रकार चैतसिक समत्व या आध्यात्मिक शान्ति भंग हो जाती है। मात्र यही नहीं, कभी-कभी व्यक्ति अपनी इच्छाओं और आकाँक्षाओं को ५८ उत्तराध्ययनसूत्र ३२/२३ । ५६ वही ३२/१०२-१०५ । ६० 'पूयणट्ठी जसोकामी, माणसम्माणकामए ।। बहु पसवई पावं, मायासल्लं च कुव्वइ ।। ३५ ।।' -दशवैकालिकसूत्र ५/२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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