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* शुभकामना *
मूर्धन्यमनीषी, अन्तर्राष्ट्रीय विद्वत शिरोमणि डॉ. सागरमलजी के निर्देशन में जैन दर्शन में समत्वयोग' पर साध्वी प्रियवंदना श्रीजी ने शोध कार्य को पूर्ण कर, अपनी अध्ययन प्रियता एवं स्वाध्याय रूचि का परिचय दिया, वह अत्यन्त ही प्रशंसनीय है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मोक्ष मार्ग की साधना में समत्वयोग जैसे ग्रंथ की अतिअनिवार्यता है।
प्रस्तुत ग्रंथ में साध्वी श्रीजी ने तनाव से मुक्ति कैसे हों ? समभाव में कैसे जिऐं ? समत्व की साधना कैसे करें ? श्रावक की भूमिका कैसी हो? गृह को स्वर्ग कैसे बनाएं ? घर का वतावरण शांतिमय कैसे हो ? आदि विषयों पर प्रकाश डालकर वर्तमान युवापीढ़ी को जागृति का संदेश दिया है। यह कृति आधुनिक परिप्रेक्ष्य में आत्मोत्कर्ष हेतु परिलक्षित होती है एवं संत-समाज में अतीव उपयोगी सिद्ध होगी।
प्रस्तुत शोध प्रकाशन के अवसर पर मेरा मन प्रफुल्लित है, डॉ. साध्वी श्री प्रियवंदना श्रीजी बधाई की पात्र हैं। मैं उनका तहे दिल से अभिनंदन करता हूँ। इसी तरह आप समय-समय पर अगणित ग्रंथ निर्माण करती हुई उत्तरोत्तर ऊँचाईयों का स्पर्श करते हुए वृद्धि को प्राप्त वे अपनी विशिष्ट प्रतिभा के माध्यम से लेखनी को गति प्रदान करती हुई आगमिक क्षेत्र को अपने अवदान से संपरिपूर्ण करें। निकट भविष्य में समत्व की साधना में सफलता प्राप्त करें। यही शुभकामना।
गोविन्दचंद मेहता अध्यक्ष-कुशल एजुकेशन ट्रस्ट, मुंबई, जहाज मंदिर उपाध्यक्ष, जोधपुर.
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