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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना १८६ ६. प्रत्याख्यान त्याग की प्रवृत्ति या भोगों से विमुखता प्रत्याख्यान है। इच्छाओं के निरोध के लिये प्रत्याख्यान एक आवश्यक कर्तव्य है। प्रत्याख्यान का अर्थ है प्रवृत्ति को मर्यादित अथवा सीमित करना।०५ प्रत्याख्यान समत्व को पुष्ट बनाता है। प्रत्याख्यान जीवन पर ब्रेक का कार्य करता है। नित्य कर्मों में प्रत्याख्यान का समावेश इसलिये किया गया है कि साधक आत्मशुद्धि के लिये प्रतिदिन यथाशक्ति किसी न किसी प्रकार का त्याग करता रहे। नियमित त्याग करने से अभ्यास होता है, जीवन में अनासक्ति का विकास और तृष्णा मन्द होती है। उत्तराध्ययनसूत्र में भी बताया गया है कि प्रत्याख्यान से आनवद्वारों का निरोध होता है।०६ प्रवचनसारोद्धार में प्रत्याख्यान का व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ इस प्रकार किया गया है - अविरतिस्वरूप जो प्रवृत्तियाँ अहिंसादि के प्रतिकूल हैं, उनका मर्यादापूर्वक कुछ आगार सहित त्याग करने का गुरू आदि के समक्ष संकल्पबद्ध होना प्रत्याख्यान है। इसके तीन शब्द हैं - प्रति + आ + आख्यान। प्रति = असंयम के प्रति, आ = मर्यादापूर्वक, आख्यान = प्रतिज्ञा या संकल्प करना।०७ दैनिक प्रत्याख्यान के साथ विशेष पर्व दिवसों में कुछ नहीं खाना या सम्पूर्ण दिवस के आहार का परित्याग करना अथवा नीरस या रूखा भोजन करना आदि-आदि। प्रत्याख्यान के दो रूप हैं : १. द्रव्य प्रत्याख्यान : आहार सामग्री, वस्त्र, परिग्रह आदि बाह्य पदार्थों में से कुछ को छोड़ देना द्रव्य प्रत्याख्यान है। २. भाव प्रत्याख्यान : राग-द्वेष, कषाय आदि अशुभ मानसिक १०५ योगशास्त्र स्वोपज्ञवृत्ति (उद्धृत श्रमणसूत्र पृ. १०४) । १०६ (क) 'पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरूंभइ, पच्चक्चखाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ, इच्छानिरोह गए य जीवे सव्वदब्वेसु विणीय-तण्हे सीईभूए विहरई ।। १४ ।।' -उत्तराध्ययनसूत्र अ. २६ । (ख) 'पच्चक्खणमि कए आसवदाराइं हुति पिहियाइं । आसव-वुच्छेएणं तण्हा-वुच्छेयणं होई ॥' -आवश्यकनियुक्ति १५६४ । (क) 'प्रवचनसारोद्धार' । -हेमप्रभाश्रीजी से उद्धृत् । (ख) स्थानांगवृत्ति स्था. २. की वृत्ति में प्रत्याख्यान के १० भेद और उनकी व्याख्या । प्रवचनसारख्यार' त १०७ य होई " -हमप्रभाश्रीज से उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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