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________________ १४६ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना १. बहिरात्मा; २. अन्तरात्मा; और ३. परमात्मा। इनमें बहिरात्मा मिथ्या जीवनदृष्टि या भोगवादी जीवनदृष्टि की परिचायक है। यह आध्यात्मिक समत्व की अपेक्षा उसकी विक्षिप्तता की अवस्था है। उसके पश्चात् अन्तरात्मा का क्रम आता है। अन्तरात्मा साधक आत्मा है। वह अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करने का प्रयत्न करती है और क्रमशः उसमें सफलता प्राप्त करती है। उसके पश्चात् परमात्मा का क्रम आता है। यह समत्वयोग की पूर्णता और वीतरागता की स्थिति है। बहिरात्मा सम्यक् जीवनदृष्टि को स्वीकार करके अन्तरात्मा के रूप में वासनाओं और कषायों को समाप्त करते हुए परमात्मदशा को प्राप्त करती है। इस प्रकार जैनदर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा के द्वारा भी समत्वयोग की साधना की प्रक्रिया को ही स्पष्ट किया गया है। किन्तु इस प्रक्रिया में बहिरात्मा और परमात्मा दोनों ही दो छोर हैं। समत्वयोग की साधना की प्रक्रिया अन्तरात्मा के माध्यम से चलती है। समत्वयोग की साधना या अन्तरात्मा के विकास के विविध चरणों का सम्यक विवेचन जैनदर्शन के गुणस्थान सिद्धान्त में मिलता है। इस सिद्धान्त में तीव्रतम क्रोध, मान, माया और लोभ की स्थिति, जिसे जैनदर्शन की परिभाषा में अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क कहा गया है, उससे ऊपर उठते हुए पूर्ण वीतरागता की स्थिति प्राप्त करने के चौदह चरणों का उल्लेख मिलता है। जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना में आध्यात्मिक विकास के निम्न चौदह चरण बताये गये हैं। उन्हें गुणस्थान की संज्ञा दी जाती है। आगे हम क्रमशः इन चरणों या गुणस्थानों की विवेचना करेंगे। जैनदर्शन में गुणस्थान की अवधारणा आध्यात्मिक विशुद्धि के विभिन्न स्तरों को सूचित करने के लिये उपलब्ध होती है। व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का मूल्यांकन इसी अवधारणा के आधार पर होता है। मोह और योग के कारण जीवन के अन्तरंग परिणामों में प्रतिक्षण होनेवाले उतार-चढ़ाव को गुणस्थान कहा गया है। कर्मों का उदय, १८ (क) अध्यात्ममत परीक्षा गा. १२५; (ख) योगावतार द्वात्रिंशिका १६-१२; और (ग) 'तिपयारो सो अप्पा परमंतरबाहिरो 'हु' देहीजं ।। तत्थ परो झाइज्जइ अंतोवाएण चइवि बहिरप्पा ।। ४ ।।' -मोक्खपाहुड ६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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