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________________ समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना १४१ ३.३ समत्वयोग के साधक का स्वरूप : समत्वयोग का साधक जीव या आत्मा को माना गया है। जीव या आत्मा के स्वरूप का निर्वचन दो रूपों में पाया जाता है - एक व्यवहारिक स्तर और दूसरा आध्यात्मिक स्तर पर। व्यवहारिक स्तर पर शरीरधारी और विभावदशा में जीनेवाला व्यक्ति ही समत्वयोग का साधक माना जा सकता है; क्योंकि जिसने समत्व को पूर्णतः उपलब्ध कर लिया है उसके लिये साधना की कोई अपेक्षा नहीं है। समत्वयोग की साधना तो उसी व्यक्ति को करना है, जो वर्तमान में विषय वासनाओं तथा इच्छाओं व आकांक्षाओं से ग्रस्त है। जैन धर्म में आत्मा की दो अवस्थाएँ मानी गई हैं - एक स्वभाव अवस्था और दूसरी विभाव अवस्था। स्वभाव अवस्था की अपेक्षा से तो आत्मा को समत्वरूप ही माना गया है। भगवतीसूत्र में भगवान महावीर ने आत्मा को समत्वरूप कहा है। समत्व यह आत्मा का स्वलक्षण या स्वभाव है। आत्मा के लिये जैनदर्शन में आचार्य कुन्दकुन्द ने 'समय' शब्द का भी प्रयोग किया है। वस्तुतः जो समत्व से युक्त है, वही समय अर्थात् आत्मा है। समय का अर्थ होता है - जो अच्छी तरह चलता रहे, शाश्वत रहे। काल कभी रूकता नहीं है, इसलिए समय कहलाता है। आत्मा भी शाश्वत होती है, इसलिए समय कहलाती है। 'सम्यक् एति इति समयः समइयम् सम् ए अ।' सम्+अय्+अ = समय। समत्व से समय का कोई तालमेल नहीं है। आत्मा के इस समत्वस्वरूप की पुष्टि डॉ. सागरमल जैन ने अपने ग्रन्थ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक' अध्ययन के द्वितीय भाग में की है। वे लिखते हैं कि “जहाँ जीवन है, चेतना है; वहाँ समत्व रखने के प्रयास दृष्टिगोचर होते हैं। चैतसिक जीवन का मूल स्वभाव यह है कि वह बाह्य एवं आन्तरिक उत्तेजनाओं एवं संवेदनाओं से उत्पन्न विक्षोभों को समाप्त कर साम्यावस्था बनाये रखने की कोशिश करता है।"१६ इसकी पुष्टि में वे फ्रायड का एक उद्धरण भी प्रस्तुत करते हैं। फ्रायड लिखते हैं कि “चैतसिक जीवन और १६ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' भाग २ पृ. १ । -डॉ. सागरमल जैन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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