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________________ जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और समत्वयोग १११ का अर्थ है माता। पांच समितियों और तीन गुप्तियों - इन आठों में सम्पूर्ण प्रवचन का समावेश हो जाता है। इसलिए इन्हें प्रवचनमाता कहा जाता है। इन आठों से प्रवचन का प्रसव होता है; इसलिए भी इन्हें प्रवचन माता कहा जाता है। समिति श्रमण जीवन की साधना का पक्ष है। उत्तराध्ययनसूत्र में समिति के लिए 'समिई' शब्द प्रयुक्त किया गया है। समिति शब्द 'सम' उपसर्गपूर्वक 'इण' (गतो) धातु से बना है। सम् का अर्थ सम्यक् प्रकार से है और इण का अर्थ गति या प्रवृत्ति है। दूसरे शब्दों में विवेकपूर्वक आचरण करना समिति है। उत्तराध्ययनसूत्र, ज्ञानार्णव तथा नवतत्त्वप्रकरण में पांच समिति तथा तीन गुप्ति का वर्णन विस्तार से मिलता है। लेकिन हम यहाँ पर उनका संक्षिप्त विवरण ही प्रस्तुत करेंगे। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार पांच समिति आचरण के क्षेत्र में प्रवृत्ति रूप हैं।०३ इसी प्रकार नवतत्त्वप्रकरण में भी सम्यक प्रकार से उपयोगपूर्वक जो प्रवृत्ति हो वह समिति और सम्यक् प्रकार से उपयोगपूर्वक निवृत्ति हो वह गुप्ति है। समिति श्रमण जीवन में संयम निर्वाह के लिए गमनादि पांच क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है। वे पाँच क्रियाएँ इस प्रकार है : १. ईर्यासमिति : गमनागमन क्रिया में सावधानी।२०४ २. भाषासमिति : बोलने में सावधानी ।२०५ । ३. एषणासमिति : आहारादि की गवेषणा (अन्वेषण), ग्रहण एवं २०३ (क) “एयाओ पञ्च समिईओ, चरणस्स य पक्त्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्तेसु सव्वसो' ।।२६।। -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २४ । (ख) 'इरिया भासेसणादाणे, उच्चारे समिईसु अ । मणगुत्ति वयगुत्ति, कायगुत्ति तहेव य ।। २६ ॥' -नवतत्त्वप्रकरण । 'इर्याभाषैषणादान निक्षेपोत्सर्गसंज्ञकाः । सद्रिः समितयः पञ्च निर्दिष्टाः संयतात्माभिः ।। ३ ।। वाक्कायचित्तजाने कसा वद्य प्रतिषेधकं । त्रियोगरोधनं वा स्याद्यत्तद्गुप्तित्रयं मतम् ।। ४ ।।' -ज्ञानार्णव सर्ग १८ । २०४ 'पासुगमग्गेण दिवाअवलोगंतो जुगप्पमाणहि । गच्छइ पुरदो समणो इरियासमिदि हवे तस्स ।। ६१ ।।' -नियमसार ४ । 'पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पसंसियं वयणं । परिचत्ता सपरहिदं भासासमिदी वदंतस्स ।। ६२ ।।' -वही । २०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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