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________________ जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और समत्वयोग इस प्रकार के बाह्य और अन्तरंग भेदों का ज्ञानार्णव में शुभचन्द्राचार्य ने विस्तृत विवेचन किया है। उन्होंने बाह्य परिग्रह के दस भेद किये हैं और अन्तरंग परिग्रह के चौदह भेद किये हैं । १६५ आचारांगसूत्र में श्रमण के सहायभूत चार उपकरणों का ही विधान किया गया है वस्त्र, पात्र, कम्बल एवं रजोहरण आदि । १६६ आचारांगसूत्र के अनुसार स्वस्थ साधु एक वस्त्र रख सकता है । साध्वी के लिए चार वस्त्र रखने का विधान है। इसी प्रकार मुनि एक से अधिक पात्र नहीं रख सकता ।" प्रश्नव्याकरणसूत्र में मुनि के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है । १९८ १६७ १६५ १६६ शुभचन्द्राचार्य ने बताया है कि परिग्रह से काम, काम से क्रोध, क्रोध से हिंसा, हिंसा से पाप और पाप से नरक गति प्राप्त होती है । इस प्रकार दुःख का मूल परिग्रह है । " श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में परिग्रह को लेकर किंचित् मतभेद है । दिगम्बर परम्परा के अनुसार मुनि को वस्त्र आदि अन्य सामग्री रखने का निषेध है; जबकि श्वेताम्बर परम्परा उसे संयमोपकरण के रूप में स्वीकार करती है । १६६ १६७ १९८ - इस प्रकार सम्यक्चारित्र के वर्णन में श्रमण, समत्व या समभाव की साधना के लिए हमने यहाँ पर पंचमहाव्रतों का संक्षिप्त वर्णन किया। अब महाव्रतों को दूषित करनेवाली पच्चीस क्रियाओं का वर्णन करेंगे। तत्पश्चात् पांच समिति, तीन गुप्ति, बाईस परीषह, दस यतिधर्म, बारह भावना आदि का हम अग्रिम पृष्ठों पर संक्षिप्त में वर्णन करेंगे। इन पच्चीस क्रियाओं के नाम तत्त्वार्थसूत्रादि की टीका एवं नवतत्त्व प्रकरण में निम्न प्रकार से दिए गए हैं : (२) अधिकरणकी क्रिया; (१) कायिकी क्रिया; १६६ . 'वास्तु क्षेत्रं धनं धान्यं द्विपदाश्च चतुष्पदाः । शयनासनयानं च कुप्यं भाण्डममी दश ।। ४ । ' आचारांगसूत्र १/२/५/६० । Jain Education International वही २/५/१/११४ एवं २/६/१/१५२ । (क) बोलसंग्रह ५ / २८-२६ । (ख) प्रश्नव्याकरणसूत्र १० । 'संगात्कामस्ततः क्रोधस्तस्माद्धिसा याऽशुभम् । तेन श्वाश्री गतिस्तस्यां दुःखं वाचामगोचरम् ।। १२ ।। ” १०६ For Private & Personal Use Only -ज्ञानार्णव सर्ग १६ । - ज्ञानार्णव सर्ग १६ । www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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