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________________ जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और समत्वयोग १०१ अहिंसा एवं सत्य का परिपोषक है; क्योंकि चौर्यकर्म व्यक्ति को हिंसक एवं असत्य भाषी बनाता है। चौर्यकर्म भी एक प्रकार की हिंसा है। जिसकी वस्तु चुराई जाती है, उसका मन दुःखी होता है। उसे आर्थिक हानि होती है। आचार्य शुभचन्द्र एवं अमृतचन्द्र का कथन है कि अर्थ या सम्पत्ति प्राणियों का बाह्य प्राण है, क्योंकि इस पर उनका जीवन आधारित रहता है। इसलिए किसी की वस्तु का हरण उसके प्राणों के हनन के समान है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में भी कहा गया है कि यह अदत्तादान (चोरी) सन्ताप-मरण एवं भय रूपी पातकों का जनक है - दुसरे के धन के प्रति लोभ उत्पन्न करता है।६२ चोरी करने वाला व्यक्ति परलोक में दुःख रूपी भयंकर ज्वाला और घोर नरक को प्राप्त करता है।६३ आगे शुभचन्द्राचार्य ने कहा है कि “हे आत्मन्! नदी, नगर, पर्वत, ग्राम, वन, घर तथा जंगल इत्यादि में रखे हुए, गिरे हुए तथा नष्ट हुए धन का मन, वचन और काया से त्याग कर दे।६४ चेतन तथा अचेतन वस्तु का मोह छोड़ दे। चेतन अर्थात् दास, दासी, पुत्र, पौत्र, स्त्री, गौ, महीष तथा घोड़े आदि और अचेतन अर्थात् धन, धान्य, सुवर्ण आदि का त्याग कर दे।"१६५ दशवैकालिकसूत्र तथा ज्ञानार्णव में बताया गया है कि श्रमण द्वारा छोटी अथवा बड़ी सचित्त तथा अचित्त कोई भी वस्तु, चाहे वह दाँत साफ करने का तिनका भी क्यों न हो, बिना दिए लेने -ज्ञानार्णव सर्ग १० ! -ज्ञानार्णव सर्ग १० । (क) 'वित्तमेव मतं सूत्रे प्राणा बाह्याः शरीरिणाम् । तस्यापहारमात्रेण स्युस्ते प्रागेव घातिताः ।।३।।' (ख) पुरूषार्थसिद्धयुपाय १०३ ।। प्रश्नव्याकरणसूत्र ३ ।। 'विशन्ति नरक घोरं दुःख ज्वाला करालितं । अमुत्र नियतं मूढाः प्राणिनश्चौर्यचर्विता ।। १५ ।।' (क) 'गामे वा णयरे वाऽरण्णे वा पेच्छिऊण परमत्थं । ___जो मुयदि गहणभावं तिदियवदं होदि तस्सेव ।। ५८ ।।' (ख) 'सरित्पुरगिरिग्रामवनवेश्मजलादिषु । स्थापितं पतितं नष्टं परस्वं त्यज सर्वथा ।। १६ ।' 'चिदचिद्रूपतापत्रं यत्परस्वमनेकधा । तत्त्याज्यं संयमोद्दामसीमासंरक्षणोद्यमैः ।। १७ ।।' -नियमसार । -ज्ञानार्णव सर्ग १०। -वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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