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________________ जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और समत्वयोग ६७ सकता।३६ दशवैकालिकसूत्र में प्रतिपादित किया गया है कि 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो' अर्थात् अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है।४० शुभचन्द्राचार्य ने भी बताया है कि जिसमें मन, वचन और काया से त्रस और स्थावर जीवों का धात स्वप्न में भी न हो, उसे आद्यव्रत (प्रथम महाव्रत) अहिंसा कहते हैं। आगे उन्होंने बताया है कि जहाँ हिंसा होती है, वहाँ धर्म लेशमात्र नहीं रहता।४२ हिंसा दुर्गति का द्वार है, पाप का समुद्र है तथा हिंसा ही घोर नरक और महाअन्धकार है।४३ 'प्रमत्त योगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा' अर्थात् मूल में प्रमाद को हिंसा का कारण माना गया है। अहिंसा व्रत का पालन श्रमण और गृहस्थ दोनों के लिए अनिवार्य है। कहा गया है कि 'अहिंसा परमो धर्मः हिंसा सर्वत्र गर्हिता' अर्थात् अहिंसा ही सर्व श्रेष्ठ धर्म है। हिंसा सर्वत्र गर्हित मानी गई है। वस्तुतः अहिंसा सभी जीवों के भय को दूर करने वाली परम औषधि है। मृषावाद (सत्य महाव्रत) : . समत्वयोग की साधना करनेवाला साधक दूसरे महाव्रत में असत्य का सम्पूर्णतः त्याग करता है। श्रमण मन, वचन एवं काया तथा कृत-कारित-अनुमोदन की नव कोटियों सहित असत्य से विरत होने की प्रतिज्ञा करता है। मन, वचन और काया में एक रूपता का अभाव ही मृषावाद है।४४ उत्तराध्ययनससूत्र के अनुसार क्रोध, हास्य, लोभ अथवा भय के कारणों के उपस्थित होने पर -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन । १३६ 'न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्मो पण्णत्तो ।।।।' दशवैकालिकससूत्र १/१ । 'वाचित्त तनुभिर्यत्र न स्वप्नेऽपि प्रवर्त्तते । चरस्थिरांगिनां घातस्तदाद्यं व्रतमीरितम् ।।८।।' 'क्षमादि परमोदारैर्यमैयौं वर्द्धितश्चिरम् । हन्यते स क्षणादेव हिंसया धर्मपादपः ।। १४ ।।' 'हिंसैव दुर्गतेरिं, हिंसैव दुरितार्णवः । हिंसैव नरकं घोरं हिंसैव गहनं तमः ।। १६ ।।' षटखण्डागम में गुणस्थान विवेचन पृ. ५६ । -ज्ञानार्णव अष्टम सर्ग। -ज्ञानार्णव सर्ग ८ । -वही। १४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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