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________________ ५४ अलंकारचिन्तामणि पंचममें चित्रकाव्य, षष्ठमें शब्द-दोष, सप्तम, अष्टम, नवम तथा दशम अध्यायों में अर्थालंकार, एकादशमें अर्थालंकारदोष, द्वादश, त्रयोदश, चतुर्दश और पंचदश अध्यायोंमें रस और नायिकाभेदादिका निरूपण है और षोडश अध्यायमें महाकाव्य, प्रबन्ध आदिका लक्षण आया है। रुद्रटने वैज्ञानिक सिद्धान्तपर अलंकारोंका वर्गीकरण किया है। इन्होंने पाँच शब्दालंकार और अट्ठावन अर्थालंकारोंका निरूपण किया है । रुद्रटने अर्थालंकारोंको चार वर्गों में विभक्त किया है १. वास्तव वर्ग-इस वर्गमें तेईस अलंकार प्रतिपादित हैं। २. औपम्य वर्ग-इस वर्गमें इक्कीस अलंकार निरूपित हैं। ३. अतिशय वर्ग-इस वर्गमें बारह अलंकार आये हैं। ४. श्लेष वर्ग-इस वर्गमें एक श्लेषालंकार आया है। इस प्रकार सत्तावन और एक संकर, सब मिलाकर अट्ठावन अलंकारोंमें सात अलंकार ऐसे हैं जो दो-दो वर्गमें एक ही नामसे दिखलाये गये हैं जैसे सहोक्ति, समुच्चय और उत्तर । ये तीनों वास्तव और अतिशय दोनों वर्गोंमें सम्मिलित हैं। इसी प्रकार उत्प्रेक्षा एवं पूर्व, औपम्य और अतिशय दोनों वर्गोंमें है। श्लेषको भी अर्थालंकार और शब्दालंकार दोनोंमें पृथक्-पृथक् गिनाया गया है। इस प्रकार उक्त आठ अलंकारोंको कम कर देनेपर पचास अर्थालंकार और पांच शब्दालंकार; कूल पचपन अलंकारोंका नामोल्लेख हुआ है। रुद्रटने अपने पूर्ववर्ती भामह और दण्डी आदिसे केवल छब्बीस अलंकार ही ग्रहण किये हैं। शेष उन्तीस अलंकार रुद्रट द्वारा निरूपित हैं। और उनमें बहुतसे महत्त्वपूर्ण अलंकार रुद्रटके उत्तरकालीन आचार्योंने स्वीकार किये हैं । रुद्रटने भी अर्थालंकारोंमें वक्रोक्तिको विशेष अलंकार स्वीकार किया है और इसकी परिभाषा सादृश्य लक्षणके आश्रित मानी है । इस प्रकार रुद्रटने कई नवीनताएँ प्रस्तुत की हैं । अलंकारचिन्तामणिके साथ तुलना करनेपर ज्ञात होगा कि रुद्रटके काव्यालंकारमें शक्ति, व्युत्पत्ति और अभ्यास इन तीनोंको काव्यका हेतु स्वीकार किया है। काव्यालंकारमें लिखा है तस्यासारनिरासात्सारग्रहणाच्च चारुणकरणे । त्रितयमिदं व्याप्रियते शक्तिर्युत्पत्तिरभ्यासः ॥ अलंकारचिन्तामणिमें भी काव्यहेतु प्रायः इसी प्रकार वर्णित हैं। रुद्रटने काव्यउत्पत्तिके लिए प्रतिभापर उतना बल नहीं दिया है, जितना अलंकारचिन्तामणिमें दिया गया है। अलंकारचिन्तामणिके रचयिता अजितसेन, प्रज्ञा और प्रतिभाको काव्यसृजनके लिए आवश्यक मानते हैं । रुद्रटने काव्यपरिभाषामें भामहका अनुसरण किया है। उन्होंने 'ननु शब्दार्थों .१. काव्यालंकार, १२१४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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