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________________ ४४ अलंकारचिन्तामणि चिन्तामणिमें नाटक और ध्वन्यर्थको छोड़ दिया गया है, उसी प्रकार इस काव्यालंकारमें भी। दोनों ग्रन्थोंकी काव्य-परिभाषापर विचार करते हैं तो इस काव्यालंकारमें निरूपित काव्य-परिभाषाकी अपेक्षा अलंकारचिन्तामणिकी काव्य-परिभाषा अधिक स्पष्ट और व्यापक है। काव्यालंकारमें 'शब्दार्थों सहितौ काव्यं'' अर्थात् शब्द और अर्थ इन दोनोंके साहित्य-सहभावको काव्य कहा है। भामहकी यह परिभाषा सूत्र रूपमें है । अतः इसे समझना साधारण पाठकके लिए सुसाध्य नहीं है। अजितसेनने काव्यकी परिभाषा बहुत ही स्पष्ट और व्यापक रूपमें प्रस्तुत की है। इस परिभाषासे काव्यका कोई भी उपकरण छूटता नहीं है। काव्यहेतुओंका वैसा स्पष्ट चित्रण काव्यालंकारमें नहीं उपलब्ध होता है, जैसा अलंकारचिन्तामणिमें । काव्यालंकारमें 'काव्यं तु जायते जातु कस्यचित्प्रतिभावतः' से प्रतिभाहेतु निःसृत होता है । प्रतिभा त्रिकालदर्शिनी है और है नवनवोन्मेषशालिनी। प्रतिभाहेतुके अनन्तर अध्ययनीय विषयोंकी गणना की गयी है जिससे व्युत्पत्ति हेतु निःसृत होता है । अभ्यासहेतुका उल्लेख भी किया है। भामहने विषयके अनुसार काव्यके चार भेद किये हैं, १. देव या राजाओंके इतिवृत्तपर आश्रित, २. कल्पित, ३. कलाश्रित और ४. शास्त्राश्रित । पुनः काव्यके पाँच भेद बतलाये हैं, १. महाकाव्य, २. नाटक, ३. आख्यायिका, ४. कथा और मुक्तक । काव्योंका यह वर्गीकरण अलंकारचिन्तामणिके प्रायः तुल्य ही है। अलंकारचिन्तामणिमें काव्यभेदोंके निम्नलिखित आधार वर्णित हैं १. छन्दके सद्भाव और अभाव-सम्बन्धी आधार । २. भाषाका आधार । ३. विषयका आधार । ४. स्वरूप विधानका आधार । छन्दके सद्भाव और अभावके आधारपर काव्यके गद्य और पद्य ये दो भेद होते हैं । भाषाके आधारपर संस्कृत, प्राकृत, पैशाची और अपभ्रंश ये चार भेद हैं । विषयके आधारपर ख्यातिवृत्त, कल्पितवस्तु, कलाश्रित और शास्त्राश्रित ये चार भेद हैं। स्वरूपविधानके अनुसार महाकाव्य, रूपक, आख्यायिका, कथा और मुक्तक ये पाँच भेद हैं । इस प्रकार काव्योंके भेद-प्रभेद प्रायः दोनों अलंकार ग्रन्थोंमें तुल्य हैं। महाकाव्यका स्वरूपविधान अलंकारचिन्तामणि का काव्यालंकारकी अपेक्षा विशिष्ट है। काव्यालंकारमें प्रथम परिच्छेदकी उन्नीसवीं कारिकासे बाईसवीं कारिका तक महाकाव्यका स्वरूप आया है। इस स्वरूपमें बताया है कि कथानक सर्गोमें विभक्त हो और विषय किसी महान् चरित्रसे सम्बद्ध हो, पंचसन्धि समन्वित, एवं मन्त्रणा, दूत सम्प्रेषण, युद्ध आदिका १. काव्यालंकार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, १।१६ । २. वही, ११५। ३. वही, १६ तथा ११० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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