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________________ -२६३ ] पञ्चमः परिच्छेदः २९७ कालस्यानित्यत्वं शान्तरसेऽनुभावः स च शृङ्गारे प्रोक्त इति प्रतिकूलग्रहणम् । इत्यादयो रसभावगता दोषा बोध्याः । लज्जारत्युत्साहादिशब्दग्रहणं कैश्चिदिष्यते तथा बहुधा प्रयोगात् । क्वचित्क्वचिच्च चित्रादौ दोषा एव गुणा यथा । शास्त्रमध्यैष्ट षड्वर्ग व्यजेष्टायष्ट सज्जिनम् ॥२६२।। क्रियापदोदाहरणकाव्यमेकं कृतं चेत्परुषमपि न दुष्यति । यमकश्लेषचित्रादौ द्वयक्षरादिनिबन्धने । क्लिष्टासमर्थनेयार्थपदादि न च दुष्यति ॥२६३।। सुविम्बाधरेऽस्या नितम्बाम्बरेण गिरिस्था लता वा नितम्बाम्बरेण । अत्र यौगिकात् प्रत्युक्तस्याम्बरशब्दस्य मेघार्थेऽसमर्थत्वेऽपि न दोषः । राजीवराजीवतनौ सुराणां नेत्राऽलिनेत्रालिरवादितत्त्वम् । अत्र वाक्यसंकीर्णत्वेऽपि न दोषः। एवं पूर्वोक्तशब्दालंकारप्रकरणे दोषाणामपि गुणत्वं द्रष्टव्यम् । समयकी अनित्यता शान्तरसमें अनुभाव है, वह अनुभाव यहां शृंगार रसमें कहा गया है। अतएव प्रतिकूलता है.-इत्यादि रस और भावमें विद्यमान दोषोंको समझना चाहिए । लज्जा, रति, उत्साह इत्यादि शब्दोंका उल्लेख कोई-कोई आचार्य उचित मानते हैं, क्योंकि उनका प्रयोग प्रायः देखने में आता है । कहीं दोष भी गुण होते हैं । कहीं-कहीं चित्रादि काव्योंमें रहनेवाले दोष भी गुण हो जाते हैं। जैसे-उसने शास्त्रों का अध्ययन किया, काम, क्रोध इत्यादि शत्रुसमूहोंको जीता और उत्तमदेव जिनेश्वरकी पूजा की ॥२६२।। क्रियापदोंके उदाहरण-इस काव्यमें परुष दोष भी नहीं माना जाता है । यमक, श्लेष और चित्रकाव्य तथा दो अक्षरोंसे निबद्ध रचनामें क्लिष्ट, असमर्थ और नेयार्थ इत्यादि दोष नहीं माने जाते हैं ॥२६३॥ किसी नायिकाके नितम्बके वस्त्रसे वैसी ही शोभा हुई जैसे पर्वतके नितम्ब भागपर अवस्थित मेघसे पर्वतपर उभरी हुई लताको शोभा होती है। यहाँ यौगिक शक्तिसे प्रयोग किये हुए अम्बर शब्दका मेघ अर्थमें प्रयोग करनेसे असमर्थ दोष नहीं हुआ। इसी प्रकार 'राजीवराजीवतनी सुराणां नेत्रालिनेत्रालिरवादि तत्त्वम्' में वाक्य संकीर्ण होनेपर भी दोष नहीं माना जायेगा। पूर्व कथित शब्दालंकार प्रकरणमें दोषोंको भी गुण समझना चाहिए । १. ख-प्रती कश्चिद् । २. काव्यमेवम्-क । ३. प्रयुक्तस्या....क-ख । ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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