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२६४ अलंकारचिन्तामणिः
[ ५।१४८योगः क्वचिद् विद्यमानोऽप्यस्फुटः। स हि वृक्ष इत्यत्र आतपं वृश्चतीति व्युत्पत्तिः कस्यचिज्जायते । योगाभासो मण्डपादिः। मण्डं पिबतीति विद्यमानाऽपि व्युत्पत्तिरसिंगतेराभासरूपा । मण्डपायित्वान्मण्डपो न हि। अपितु मडु भूषायां मण्डनं मण्डः तं पातीति व्युत्पत्तिर्वरं घटते ।
'शुद्धतन्मूलसंभिन्नभेदैस्त्रेधा स यौगिकः। ते च स्थितिलसद्दीप्तिमार्कण्डेयादयः क्रमात् ॥१४८॥
स्थानं स्थितिरित्यत्र शुद्धो योगः । निर्योगः प्रकृतिप्रत्ययोत्पन्नत्वात् । लसद्दीप्तिरिति यौगिकमूलः । लसद्दीप्तिशब्दाभ्यां शुद्धयौगिकाभ्यां निष्पादितत्वात्। अयं तु विशेषः । समासशब्दे प्रकृतिमात्रजन्यो योगः अथवा प्रत्ययोपयोगस्तत्राप्यस्ति । मार्कण्डेयशब्दस्तु संभिन्नः । मृकण्डवा अपत्यमिति योगस्य अव्यक्तयोगमूलमृकण्डुशब्दनिष्पाद्यत्वात् । रूढयोगिकयोमिश्रं लक्षयति ।
तन्मिश्रोऽन्योऽन्यसामान्यविशेषपरिवृत्तितः । "जलधिर्जलजं दुग्धवारिधिः स्वर्गभूरुहः ।।१४९।।
व्युत्पत्ति से भू धातु सत्ता अर्थमें नहीं है । योग कहीं रहनेपर भी स्पष्ट नहीं रहता है । जैसे-वृक्ष । इस शब्दमें आतपको दूर करता है ऐसी व्युत्पत्ति किसीकी ही होती है, सबकी नहीं। योगाभासमें मण्डप इत्यादिमें मांड़को पीता है यह व्युत्पत्ति है तो भी अर्थको संगति न होनेसे आभास है । वस्तुतः व्युत्पत्ति न रहने पर भी प्रतीत होती है। मण्ड पीने के कारण मण्डप नहीं बना है, किन्तु / मडु भूषायाम् धातुसे मण्ड बना । उस मण्डको पाति रक्षति इस व्युत्पत्तिके अनुसार मण्डप बन जाता है।
यौगिक-यौगिक शब्द भी शुद्ध, शुद्धमूलक और संभिन्न भेदसे तीन प्रकारके होते हैं । इन तोनोंके क्रमशः उदाहरण स्थिति, लसदीप्ति और मार्कण्डेय इत्यादि शब्द हैं ॥१४८॥
'स्थान स्थितिः' में शुद्ध योग है । निर्योग प्रकृति प्रत्ययसे उत्पन्न होनेके कारण । 'लसद्दीप्ति' यह शब्द यौगिक मूल है। शुद्ध यौगिक लसद्दीप्ति शब्दोंसे बने हुए होने के कारण यहां यह विशेषता है । समास शब्दमें केवल प्रकृतिसे उत्पन्न योग है अथवा प्रत्ययका उपयोग वहाँ भी है । मार्कण्डेय शब्द तो संभिन्न है । 'मृकण्डु'का अपत्य यह योग अव्यक्त योगमूलक मृकण्डु शब्दसे बना है । रूढ़ और योगिकके मिश्रणको बताते हैं ।
परस्पर सामान्य और विशेषके परिवर्तनसे बने शब्दको मिश्रित-रूढ यौगिक कहते हैं । यथा-जलधिः = समुद्र, जलज = कमल, दुग्धवारिधिः = क्षीरसागर, स्वर्गभूरुह = कल्पवृक्ष इत्यादि ॥१४९॥
१. न हि वृक्ष-क-ख । पदं नास्ति।
२. शुद्धसंभिन्नतन्मूल-ख ।
३. -ख प्रती 'जलधिः'
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