SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -९६ ] पञ्चमः परिच्छेदः अनुरक्ते सुरक्ते न स्वीकृते स्वयमेव ये । अनूढापरकीये ते भाषिते शिथिलवते ||९२॥ अपि द्वे ते अनूढे च वाच्यभेदोऽस्ति चानयोः । प्रियमाल्यैव वक्त्येका स्वयमन्यापि कामुकी ॥९३॥ प्रियं वल्लभमुपपतिमेकानूढाल्यैव सखीमुखेनैव वक्ति अन्या परकीया 'अतिकामुकी सती स्वयमपि प्रियं वक्ति । साधारणाङ्गना वेश्या कपटोक्तिर्धनिप्रिया । मर्त्यायितत्वसीत्कारनाट्यगीतादिवेदिनी ॥ ९४ || अभिलाषादिभिर्भेदैविप्रलम्भोऽप्यनेकधा । उदाहरणमेतेषामवस्थासु विलोक्यताम् ||९५|| स्वाधीनपतिकाद्यवस्थासु । हासाख्यः स्थायिभावो यो विभावाद्यैः प्रपोष्यते । विदूषकाद्यैरालम्बैः प्रोक्तो हास्यरसो यथा ॥ ९६ ॥ परकीया और अनूढ़ा — प्रेम के द्वारा गुरुजनको स्वीकृति के बिना स्वयं स्वीकार की गयी, अत्यन्त प्रेम करनेवालो, चरित्र हीन कामुकोको परकीया और अनूढ़ा कहा गया है ||९२ ॥ २४९ परकीयाके भेद - परकीया भी अनूढ़ा ही होती है; पर इसके दो भेद हैं- एक तो अपने प्रियतमसे स्वयं कुछ नहीं कहती, केवल विश्वसनीय सखी द्वारा ही सब कुछ कहती है । दूसरी परकीया अत्यन्त विषयाभिलाषिणी होती है और स्वयं ही अपने प्रियतमसे बातचीत कर लेती है ।। ९३ ।। वारांगना -- नानाविध छल-युक्त वचन बोलनेवाली, धनिकोंके साथ प्रेम करनेवाली, विपरीत रतिको ज्ञाता, चीत्कार ध्वनि करनेवाली, नृत्य, अभिनय, गीत इत्यादि - की ज्ञाता और सर्वसामान्यकी उपभोग्या नायिकाको वारांगना कहा जाता है ॥ ९४ ॥ विप्रलम्भ शृङ्गार—अभिलाष इत्यादिके भेदसे विप्रलम्भ शृङ्गार अनेक प्रकार - का होता है । इनके उदाहरण नायक-नायिकाओं की कामावस्थाओं के चित्रण में विद्यमान हैं ॥९५॥ स्वाधीनपतिका आदि आठ नायिकाओंकी अवस्थाओं में भी विप्रलम्भके उदाहरण आये हैं । हास्यरस- -जो विदूषक इत्यादि आलम्बन विभावादिकोंसे हास नामक स्थायीभाव परिपुष्ट किया जाता है, वह हास्य रस रूप में परिणत हो जाता है ॥ ९६ ॥ यथा - १. अपि कामुकी - ख । Jain Education Inational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy