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________________ २४८ अलंकारचिन्तामणिः [५।८८अशेत शयनस्थले मृदूनि गूढगूढाङ्गनाघनस्तनभुजाननस्पर्शलब्धनिद्रासुखः ।।८८।। संभोगस्यान्योन्यदर्शनस्पर्शनसंजल्पनचुम्बनालिङ्गनाद्यनेकव्यापारमयत्वेन बहुत्वादेकविधत्वेन गणना कृता। अथालम्बनभेदाद् भेदःप्रच्छन्नश्च प्रकाशश्च संभोगः स द्विधा मतः। पण्याङ्गनायामन्यः स्यादनूढादिषु चादिमः ।।८९॥ स्वकीया परकीया च तथानढा पणाङ्गना। आद्या त्रिवर्गिणश्चान्याः केवलस्मरसेविनः ॥२०॥ बन्धुपित्रादिसाक्ष्येण स्वकीया स्वकृता वधूः । दयाशीचक्षमाशीलसत्यादिगुणभूषिता ॥९१॥ इत्यादि अंगोंके स्पर्शसे अच्छी तरह निद्राको प्राप्त करनेवाले श्रीकृष्णने रात्रिमें बहुत देर तक रमण की हुई उस प्रियतमा श्रोरुक्मिणीके साथ अत्यन्त मृदुल बिस्तरपर शयन किया ॥८८॥ ___ नायक-नायिकाका परस्पर दर्शन, स्पर्शन, परस्पर प्रेमपूर्वक कथोपकथन, चुम्बन, आलिंगन इत्यादि अनेक व्यापारमय होनेके कारण सम्भोग शृंगारके असंख्य भेद हो सकते हैं । अतएव विद्वानोंने इसे एक ही प्रकारका कहा है। यों तो आलम्बनके भेदसे सम्भोग श्रृंगारके भी दो भेद हैं। सम्भोग शृंगारके भेद-सम्भोग शृंगार आलम्बनके भेदसे दो प्रकारका माना गया है-(१) प्रच्छन्न सम्भोग और (२) प्रकाश सम्भोग । वेश्या इत्यादिमें प्रकाश सम्भोग और अविवाहिता-परकीयामें प्रच्छन्न सम्भोग माना गया है ।।८९।। ___ नायिकाओंके चार भेद-स्वकीया, परकीया, अनूढ़ा और वारांगना इन चार प्रकारको नायिकाओंमेंसे धर्म, अर्थ और काम चाहनेवालोंके लिए केवल स्वकोया सेवनीय है और विषय-वासनाकी पूर्ति चाहने वालों के लिए परकीया, अनूढ़ा और वारांगना भी अभिलषणीय हैं ॥१०॥ स्वकीया नायिका-बन्धु-बान्धव, माता-पिता इत्यादिके साक्ष्य में परिणीत दया, पवित्रता, सहनशीलता, सच्चरित्रता, सत्यवादिता इत्यादि गुणोंसे विभूषित नायिकाको विद्वानों ने स्वकीया नायिका कहा है ।।९१॥ १. स्पर्श शब्दके कारण यहाँ छन्दोभंग हो रहा है। २. खप्रतो केवलम् । ३. स्वीकृता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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